मनुमुक्त ‘मानव’ ट्रस्ट द्वारा मातृभाषा-दिवस समारोह आयोजित

0 0
Read Time8 Minute, 1 Second

मातृभाषा के प्रयोग से ही सर्वांगीण विकास संभव : डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’

नारनौल।

मातृभाषा बच्चे के लिए टॉनिक के समान होती है, जो उसमें आत्म-शक्ति के साथ आत्म-विश्वास और आत्म-गौरव का भाव भी पैदा करती है। यह कहना है वीबीएस पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की कुलपति डॉ. निर्मला एस. मौर्य का। मनुमुक्त ‘मानव’ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा मातृभाषा दिवस पर आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा-दिवस समारोह’ में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए उन्होंने कहा कि मातृभाषा का स्थान मां के समान होता है, जिसे कोई अन्य भाषा नहीं ले सकती। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’, मुंबई (महाराष्ट्र) के निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने स्पष्ट किया कि मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव है। अतः हमें सर्वप्रथम मातृभाषा, फिर देश की भाषा और अंत में विश्वभाषा को अपनाना चाहिए। विश्व-नागरिक के रूप में विख्यात पूर्व राजनयिक तथा हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन, एमस्टर्डम (नीदरलैंड) की निदेशक डॉ पुष्पा अवस्थी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भारतवंशी तथा प्रवासी भारतीयों ने अपनी संस्कृति और मातृभाषाओं को सहेजकर रखा है और इसीलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के विकास हेतु भारत सरकार को भी उनका सहयोग लेना पड़ता है। पूर्व राजनयिक तथा केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली के सहायक निदेशक डॉ दीपक पांडेय ने मातृभाषा को अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम और संस्कृति का संवाहक बताते हुए कहा कि व्यक्ति चाहे जितनी भाषाएं सीख ले, लेकिन वह सोचता अपनी मातृभाषा में ही है। अत: प्रतिभा का विकास मातृभाषा द्वारा ही संभव है। इन सबसे उलट सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के कुलपति डॉ. उमाशंकर यादव ने मातृभाषा की अपेक्षा राजभाषा को अपनाने पर अधिक बल दिया, ताकि राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोया जा सके।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, नारनौल के जिला अध्यक्ष डॉ जितेंद्र भारद्वाज द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-गीत के उपरांत चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव’ के प्रेरक सान्निध्य तथा डॉ पंकज गौड़ और उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ के कुशल संचालन में संपन्न हुए इस समारोह में महात्मा गांधी संस्थान, मौका (मॉरीशस) के प्रोफेसर डॉ कृष्णकुमार झा, पूर्व राजनयिक तथा केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली की सहायक निदेशक डॉ नूतन पांडेय और राजभाषा विभाग, हिंदी शिक्षण योजना के प्राध्यापक, डॉ. वीरेंद्र परमार ने भी मातृभाषा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए उसे अपनाने और शिक्षा का माध्यम बनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि आज बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना फैशन बन गया है, जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

इन्होंने किया काव्य-पाठ : काव्य-कुंभ के रूप में आयोजित द्वितीय सत्र में छह महाद्वीपों और एक दर्जन देशों के कवियों-कवयित्रियों ने सहभागिता की, जिनमें महेंद्र नगर (नेपाल) के हरीशप्रसाद जोशी और प्रो खगेंद्रनाथ बियोगी, पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) की रीता कौशल दार-एस-सलाम (तंजानिया) के अजय गोयल, नैरोबी (केन्या) की मनीषा कंठालिया, मोका (मॉरीशस) के डॉ कृष्णकुमार झा, आबूधाबी (यूएई) की ललिता मिश्रा, दोहा (कतर) के बैजनाथ शर्मा, एमस्टर्डम (नीदरलैंड) की डॉ पुष्पिता अवस्थी, लैडिंग (सूरीनाम) की सुषमा खेदू, पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिडाड) की आशा मोर, अमेरिका से आयोवा की डॉ श्वेता सान्हा और सैन डियागो की डॉ कमला सिंह तथा भारत से पटियाला (पंजाब) के नरेश नाज़, नई दिल्ली की उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’, शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) की सरिता वाजपेई, पचेरी बड़ी (राजस्थान) के डॉ उमाशंकर यादव, दादरी की पुष्पलता आर्य, गुरुग्राम की मोनिका शर्मा और नारनौल के डॉ रामनिवास ‘मानव’ का नाम शामिल है। इस अवसर पर हिंदी, उर्दू, नेपाली, पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी, अवधी, सरायकी, डोट्याली आदि एक दर्जन प्रमुख भाषाओं और बोलियों में कविताएं पढ़ी गईं।

इनकी रही विशिष्ट उपस्थिति : लगभग चार घंटों तक चले इस महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक समारोह में विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति और कंसल्टेंट प्रो सिद्धार्थ रामलिंगम, गुजरात सिंधी अकादमी, अहमदाबाद के पूर्व अध्यक्ष डॉ हूंदराज बलवाणी, हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के पूर्व निदेशक डॉ पूर्णमल गौड़, जगन्नाथ हिंदी महाविद्यालय, तलश्शेरी (केरल) के संचालक डॉ पीए रघुराम, महिला महाविद्यालय, पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) की प्राचार्या डॉ संध्या तिवारी, चौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय, भिवानी की प्रोफेसर डॉ सुशीला आर्य, निगरानी समिति, नारनौल के अध्यक्ष महेंद्रसिंह गौड़, अररिया (बिहार) के डॉ जनार्दन यादव, अलवर (राजस्थान) के संजय पाठक, नई दिल्ली के विश्वजीत मजूमदार, शुभा राजपूत, वेंकटेश राव और उषाकिरण शास्त्री, हरियाणा में हिसार से डॉ राजेश शर्मा, अशोक वशिष्ठ और आरजू शर्मा, नारनौद से बलजीत सिंह और राजबाला ‘राज’, नारनौल से ट्रस्टी डॉ कांता भारती, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट पुष्पलता शर्मा, प्रो हितेश कुमार और राजीव गौड़ तथा अनिल कुमार, प्रतिभा मलिक, प्रवीण कुमारी, शशिकला त्रिपाठी, सीमा वर्मा आदि अन्य की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।

डॉ. रामनिवास मानव

matruadmin

Next Post

जीत लो

Wed Feb 24 , 2021
ये गगन ये धरा, ये मौसम हसीं। चलो तुम सदा , रुको ना कभी। सागर की लहरें, नदिया की धारा। कुछ बताएं हमें, समझो इशारा। ना रुकना कभी , चलते रहना सभी। मिले उर्वर धरा, या बंजर जमीं। मिले पुष्प ,कंटक, या पतझड़ कभी। मिले रोशन जहां, या अँधेरी गली। […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।