पाँच बज रहे थे।चाय की तलब से बुरा हाल हो रहा था रजत का।उठकर किचन में आया तो झूठे बर्तन मूँह चिढा रहे थे।चाय का सस्पेन भी बर्तनों के बीच औंघे मूँह पङ़ा था। गैस के स्लेब पर दो-तीन कोक्रोच घूम रहे थे।किचन की हालत देखकर ऊबकाई सी आने लगी उसे।पानी पीकर वो बालकनी में आया तो गर्म हवा के थपेड़ों ने स्वागत किया उसका ।
सुनसान बिल्डिंग…., सायः-सायः करता शहर ….,मास्क पहने जाने- अनजाने इक्के-दुक्के चेहरे….,सबके दिलों में पसरा भय…., शांत खङे सभी वाहन….दिल दहला देने वाली खबरें…., कोरोना मरीजों की बढ़ती हुई संख्या….हॉस्पिटल का अजीब सा माहौल….और उस पर ये अकेलापन…रजत की मनःस्थिति ऐसी थी कि बुक्का फाङ़कर रोना चाहता था। वो पर कैसे रो सकता है। इतना बङ़ा डॉक्टर …जिसके नीचे दर्जन भर डॉक्टरों की टीम है….इस विपरीत समय में भी कैसे रो सकता है….।
वो डाक्टर है, फाइटर है, तभी तो उसने उन सारी बातों को नजरअंदाज किया जो नताशा ने कही…वो उसे छोङ़कर चली गई पर रजत ने अपने फर्ज से मूँह नहीं मोड़ा…मोङ़ता भी कैसे…जब मरीजों को, अस्पताल को , समाज को, देश को उसकी जरूरत है, तब…तब वो कैसे पीछे हट सकता था…।
टीवी पर न्यूज चल रही थी।आज फिर कोरोना फाइटर्स डॉक्टरों पर पत्थरबाजी हुई। रोज-रोज घटने वाली ये घटनाएं किसी के भी मन को विचलित कर सकती थी।डॉ रजत अछूता कैसे रहता। लोग भगवान कहकर भले पूजते हो उसे….पर न तो वो भगवान है, न ही पत्थर …हर सुख-दुख उसे भी उतना ही महसूस होता है जितना किसी आम इंसान को …।तभी तो… तभी तो पल- पल सालता है नताशा का यूँ चले जाना….।
टीवी बंद करके रजत किचन में घुस गया ।आजकल न तो कोई मेड है , न कहीं से टिफिन ही आ सकता, न ही कोई रेस्टोरेंट खुला है….जो खाना है खुद पकाकर खाना है….रजत की आँखों से दो बूँद आँसू टपक पङ़े।
चाय का सस्पेन धोकर चाय चढाई खुद के लिये और शाम के लिये खिचड़ी भिगो दी।आठ बजे तक उसे हॉस्पिटल भी पहूँचना है।
चाय का कप उठाकर वो बालकनी में आराम कुर्सी पर बैठ गया। एक-एक सिप के साथ न चाहते हुए भी परत दर परत स्मृतियों का कारवां गुजरने लगा।
बस उन दिनों देश में कोरोना का आगमन हुआ ही था। सारे डॉक्टर इस पहेली का हल निकाल रहे थे कि ये कौनसी बीमारी है, इसका ट्रिटमेंट क्या और कैसे होगा, अब तक जिन देशों में ये बीमारी फैली है वहाँ क्या हो रहा है, कौनसे लोग हैं जो इसकी चपेट में आ रहा है।
रोज-रोज की मीटिंग, कॉन्फ्रेंस, डिस्कसन आदि से कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही थी। संक्रमण से फैलने वाली ये बीमारी कब किसको अपनी चपेट में ले लेगी कहा नहीं जा सकता…। संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ती जा रही थी। विदेशों से आने वाले आंकड़े सभी के लिये डरावने थे ।
समय सोचने और डरने का नहीं था।
डॉक्टर रजत बिना दिन- रात की परवाह किए कोरोना के मरीजों की सेवा में लगे हुए थे। देश की राजधानी कोरोना के चक्रव्यूह में फसी छटपटा रही थी और अन्य राज्यों से भी संक्रमण की सूचनाएं लगातार आ रही थी।
जब नताशा को कोरोनाऔर उसकी भयावहता का पता चला तो वो आशंकाओं से घिर गई।जब उसे ये मालूम हुआ कि इसका कोई ट्रीटमेंट नहीं है ,अभी इसकी कोई वेक्सीन भी नहीं आई और इससे संक्रमित इंसान के संपर्क में आने वाला भी संक्रमित हो जाता है। जान को खतरा है और परिवार में एक का संक्रमित होना यानि सबके लिये रिस्क….।दो साल की बेटी और रजत का कोरोना संक्रमित लोगों का ट्रिटमेंट करना उसकी चिंता को पल पल बढा रहा था।
नताशा तो एकदम विचलित हो गई थी। रोज रजत को हॉस्पिटल न जाने की सलाह देती , कभी खूद का ,कभी बेटी मुस्कान का हवाला देती, जब नहीं मानता रजत …तो धमकियों पर उतर आती । वो हर हाल में रोकना चाहती थी रजत को पर रजत नहीं रुकता। वो अपने फर्ज के बारे में समझाता , देश की जरुरत की बात बताता, समाज के प्रति आपने दयित्व के बारे में समझाता तो बिफर जाती थी नताशा और ऐसे ही एक दिन गुस्से में मुस्कान को गोद में उठाकर पीहर चली गई वो ।
साफ कह दिया- जब आपको मेरी और बेटी की फिकर ही नहीं है तो साथ रहने कि फायदा….मैं जा रही हूँ मम्मी के यहाँ …आपको हमारा साथ प्यारा हो तो छुट्टी लेकर आ जाना….जब तक यह संकट टल नहीं जाता वही रहेंगें …।वर्ना मुझे भूल जाना….।
अजीब कशमकश में फस गया था रजत। एक तरफ बीबी ,बच्ची और दुसरी ओर था फर्ज….पर वो फाइटर था,फर्ज जीत गया था उसका ।
रजत दिन देखता, न रात …खाने पीने का भी होश नहीं था, प्रतिदिन मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी ।अभी नताशा को गये चार दिन ही हुए थे कि लॉकडाउन की धोषणा हो गई….।
उस दिन भी बहुत सुनाया था नताशा ने मोबाइल पर ।लो…अब भुगतो…कहा था – ये सेवा का राग बंद करो ….पर नहीं …सेवा के लिये आपको तो राष्ट्रपति पुरस्कार मिलेगा….लेते रहना अकेले….।कुछ नहीं बोला रजत …जानता था आने वाली मुश्किलों के बारे में…. आने वाले समय के बारे में….लम्बी लङ़ाई है पर मन ही मन अपना संकल्प दोहराता- फाइटर्स कभी नहीं घबराते।
इधर जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे नताशा को अपनी गलती का अहसास हो रहा था ।देश दुनियाभर में चारों ओर फाइटर्स की प्रंशसा हो रही थी।नताशा को लग रहा था अभी जब उसे रजत के पास होना चाहिए था , उसका हौंसला बनना चाहिए था,उसे संबल देना चाहिए था, बिना मतलब मूँह फूलाकर चली आई…. उसे खुद पर गुस्सा आता पर अब फिर पछताए होत क्या जब चिङ़िया चुग गई खेत। वो बस लॉकडाउन खुलने का इंतज़ार करने लगी…।
हर बार वो नहीं होता जो हम सोचते हैं ।लॉकडाउन एक से चार तक पहूँच गया ।नताशा चाहकर भी रजत के पास नहीं जा सकी।दुनिया जब कोरोना फाइटर्स को सलाम कर रही थी ,फूलों की बारिश कर रही थी, थालियां.शंख ,तालियां बजाकर धन्यवाद दे रही थी, दीप जलाकर अपनी आशा ,शुभ भविष्य के सपनों को प्रगट कर रही थी।सब कुछ करते हुए भी नताशा अपने किये पर पछता रही थी….।
आज उसे भी नाज है अपने पति पर जिसके लिये अपनी जान से ज्यादा प्यारी है अपने मरीजों की जान….सीमा पर खङ़ा सैनिक हो या फिर कोरोना फाइटर्स या फिर अपनी ड्यूटी में लगे सफाई कर्मचारी अथवा पुलिस ….आज सबका कद आम पब्लिक की नजर में ऊँचा हो गया था।देश और दुनिया मुश्किल हालातों से गुजर रही थी और नताशा सिर्फ मुख दर्शक बनकर रह गई थी।काश! ,वो इन दिनों रजत के साथ होती तो कितनी मानसिक संतुष्टि रहती पर…।
नताशा मजबूर थी। सख्त हिदायत थी रजत की जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते वहीं पर रहो…यही मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम है।नताशा रजत की बात नकार नहीं पाई … कैसे नकारती…नहीं मानने का ही नतीजा था कि वो आज तिल- तिलकर जल रही थी और वहाँ रजत भी अकेला कितना परेशान हो रहा है ।भले ही कुछ न कहे सब पर जानती है वो। मुश्किलों के बीच ड्यूटी के बाद जब घर लौटता है कोई पानी के लिये भी पूछने वाला भी नहीं होता….नताशा का धैर्य जबाब दे रहा था उसे जाना होगा अपने रजत के पास…।
चाय पीकर रजत ने अपना मोबाइल चेक किया तो कई मिस कॉल थे नताशा के।तुरंत फोन किया उसने।
हैलो…।
हैलो, हाँ बोलो नताशा, रजत ने प्रेम से कहा।
रजत, अब मैं लौटना चाहती हूँ …., थक गई यहाँ , दो महिना से भी ज्यादा हो गया…अब नहीं…कहते-कहते रो पङ़ी नताशा…।
नहीं नताशा, रोओ नहीं ….ये परीक्षा का समय है डियर….।
पर मैं तो पहले फेल हो चुकी रजत….।जब तुम्हें मेरी जरुरत थी मैं नहीं थी तुम्हारे साथ…कहकर रोते हुए हिचकियाँ लेने लगी नताशा….।
नहीं ऐसा नहीं कहते…तुम्हारी और पूरे देशवासियों की दुआएं हैं मेरे साथ….मुझे कुछ नहीं होगा….कुछ दिन वहीं रहो ….हालात सामान्य होते ही मैं तुम्हें लेने आऊंगा….कहते हुए रजत ने घङ़ी देखी साढे सात बज रहे थे।अब रखता हूँ नताशा, आठ बजे मुझे हॉस्पिटल भी पहूँचना है।
ठीक है नताशा, अपना ख्याल रखना…फोन रखता हूँ डियर, कहते हुए फोन रख दिया रजत ने ।
भिगोई हुई खिचड़ी फ्रीज में सरका दी रजत ने।आज फिर उसे दूध-केला खाकर रहना होगा….पर कोई नहीं… हम तो फाइटर्स है….जंग के किसी भी मुहाने पर हारना नहीं जानते हम… सोचते हुए रजत के चेहरे पर एक चौङ़ी सी मुस्कान पसर गई।
नताशा ने फोन रखा, मन ही मन बुदबुदाई- कुछ दिन ओर …. बस कुछ दिन ओर…रजत के साथ अब मुझे भी बनना है फाइटर ….कमजोर नहीं हूँ मैं…।मैं एक फाइटर की पत्नी हूँ….नहीं डरती किसी कोरोना से….उससे पैदा होने वाली तमाम मुसीबतों से….नहीं डरती…नहीं डरती….।
डॉ पूनम गुजरानी
सूरत(गुजरात)