चार दिन की चाँदनी है,फिर तो अँधेरी रात है |
चार के कंधो पर जाओगे,यही आखरी बात है ||
चार पैसे क्या कमा लिए,दिमाग कैसे चढ़ गए |
चार दिन की नई बहू के,ये भाव कैसे बढ़ गए ||
चार पैसे जब कमाओगे,तब पता तुम्हे भी चल जायेगा |
अभी बाप की कमाई खा रहे बाद में पता चल जायेगा ||
चार अक्षर क्या पढ़ लिए,अपने को विद्वान समज बैठे |
चार विद्वानों की सुनोगे,तब पता चलेगा तुम कहाँ बैठे ||
चार दिन जम के न बैठोगे,फिर कमाई क्या कर पाओगे |
नहीं बैठोगे तुम दुकान पर,दुकान को भी तुम गवांओगे ||
चार दिन की ये बहू,हमे ही ये सब पाठ पढ़ा रही |
हमे तो कुछ भी आता नहीं,यही सब सिखा रही ||
चार बर्तन होते है जब घर में.तो अवश्य वे खड़केगे |
चार पैसे होते है जब जेब में वे दिमाग में खड़कगे ||
चार चवन्नी थी जब चांदी की,बोलते थे जय गाँधी की |
आज चवन्नी जब न रही, बोलते जय राहुल गाँधी की ||
आर के रस्तोगी