0
0
Read Time39 Second
अमनो अमन बेचे कुछ गद्दार बन गए
तलवे चाटते रहें और हिस्सेदार बन गए
ओढ़ रखा है समाजसेवक का लिबास
खलनायक भी नायक के किरदार बन गए
जुबाँ में नहीं उनके गालियों के सिवा कुछ
पास उनके जरूरत से ज्यादा हथियार बन गए
हमने देखा है उजला चेहरा और दिल काला
सरे बाज़ार देखो वो गुनहगार बन गए
हमने लिया है सच लिखने का जिम्मा”सागर”
ऐसे ही थोड़े हम कलमकार बन गए
-किशोर छिपेश्वर”सागर”
बालाघाट
Post Views:
452