गूँगे बैहरो की बस्ती में
क्या बोलेगा सुनेगा कोई।
बस अंधो की तरह
बैठकर भीड़ बड़ा देगा।
देख दृश्य यह आयोजक
बहुत खुश हो जाते है।
और अपने को स्वयं ही
बहुत महान बताते है।।
गूँगे बैहरो की बस्ती में
क्या बोलेगा सुनेगा कोई..।
नजारा आजकल ऐसा ही
बहुत चल रहा है।
शिक्षक बाबा और नेता
सभी का यही अलाम है।
ज्ञान अधूरा होने पर भी
ज्ञानी कहलाते है।
अंधे गूँगे और बैहरो की
बस्ती में ये पूजे जाते है।।
गूँगे बैहरो की बस्ती में
क्या बोलेगा सुनेगा कोई।
कामधाम और संस्कारों की
अब तो तुम मत बात करो।
सुबह से लेकर रात तक
वाद विवाद में पड़े रहो।
दिशा हीन हो रहे युवा अब
राह कौन इन्हें दिखायेगा।
बिना शिक्षा आदि के क्या
कोई महापुरुष बन पायेगा।।
गूँगे बैहरो की बस्ती में
क्या बोलेगा सुनेगा कोई..।
क्या हाल है अब यहां के
कुछ तो तुम करो विचार।
कब तक गूँगे और बैहरे
बनकर ये तमाशा तुम देखोगे।
अपनी करनी का फल भी
आने वाली पीढ़ियों पर थोपोगें।
कब तक और मौन रहकर
अपने समाज को नष्ट करोगें।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन मुंबई