कोरोना संक्रमण एवं ऑनलाइन शिक्षा

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वक्त की जरूरत ने शिक्षा प्रणाली को ऑनलाइन बनाने के लिए मजबूर कर दिया, क्योंकि समय पर र्कोर्स पूरा करना भी जरूरी था। बोर्ड व परिषद द्वारा भले ही पाठ्यक्रम की कटौती कर परीक्षाएं लेने की बात कही जा रही हो, लेकिन पठन-पाठन के बिना परीक्षा योग्य होना भी छात्रों के लिए असंभव था। शारीरिक दूरियों के साथ सामाजिक दूरियां न बने, इस मनोवृत्ति से भी ऑनलाइन शिक्षा को उपयोगी माना गया है। कोरोना संक्रमण के कारण मार्च से स्कूल बंद है । एनुअल स्टेटस ऑफ एडुकेशनल रिपोर्ट (असर) का मानना हैं कि वर्ष 2018 की अपेक्षा 1.9 से बढ़कर 3.4% नामांकन हुए हैं। इसीतरह कई दावे असर की 15वीं रिपोर्ट में किये गए हैं।असर की रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन ही पढ़ाई का सहारा है। इसमें प्राइवेट स्कूलों के बच्चें आगे हैं।60% बच्चे ऐसे परिवारों से है जिनके परिवार में कम से कम एक स्मार्ट फोन हैं। प्रदेश में यह प्रतिशत बढ़ता दिख रहा है। स्मार्ट फ़ोन वर्ष 2018 में 23.3% था जो 2020 में62.7% हो गया।मार्च में स्कूल बंदी से पहले व बाद में 80% से ज्यादा बच्चो के पास उनकी वर्तमान कक्षा की पाठ्य सामग्री उपलब्ध थी इसमें सरकारी स्कूल के बच्चे अव्वल हैं प्राइवेट स्कूल के बच्चों के अपेक्षा।सरकारी स्कूलों के अपेक्षा प्राइवेट स्कूलों के बच्चे ऑनलाइन संसाधनों तक पहुचने में आगे हैं। इसी लिहाज से वह ऑनलाइन पढ़ाई के मामलों में भी आगे हैं।
असर का रिपोर्ट बताता हैं कि कोरोना काल में मप्र , महाराष्ट्र, गुजरात, हिमांचल ,त्रिपुरा में स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 30% बढ़ा दी तथा उनके परिवार के द्वारा पढ़ाई में सपोर्ट मिला।कोरोना काल मे यह सर्वे ऑनलाइन 22 राज्यों एवमं 4 केंद्रशासित प्रदेशों में कराया। देश के दस ग्रामीण परिवारों में से एक ने मार्च में स्कलों का बंदी करने के बाद अपने बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए एक स्मार्ट फोन खरीदा।असर रिपोर्ट यह भी दावा करता है कि उप्र के सरकारी स्कूलों में कोविद-19 के कारण 10% दाखिले बढ़े।जानकारों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में दाखिले बढ़ने की वजह कोविद-19 है।
लॉकडाउन के कारण परिवारों के आर्थिक हालात बहुत खराब हुआ। पूर्व शिक्षा निदेशक केएम त्रिपाठी बताते हैं कि गांवों में सरकारी स्कूल घर के पास है जबकि निजी दूर। कोरोना के कारण लोगों ने बच्चों को दूर भेजना उचित नहीं समझा जब पढ़ाई ऑनलाइन व वर्कबुक और विडियो के जरिये ही लेनी है तो मोटी फीस देकर प्राइवेट स्कूलों में दाखिले लेना भी अभिभावकों को तर्कसंगत नहीं लगा।असर का आंकड़ा उप्र के बारे में यह खुलासा किया कि 52.30% बच्चों ने किताबों व 33.10% बच्चों ने वर्कबुक से पढ़ाई की । 83.50% सरकारी स्कूल के बच्चों और निजी स्कूल के 74.90% के पास किताबें उपलब्ध रहीं।असर रिपोर्ट यह भी दावा करता है कि उप्र के सरकारी स्कूलों में 5% नामांकन संख्या बढ़ी हैं।
असर के उपरोक्त रिपोर्ट के आधार पर कहा जा सकता है कि इस महामारी काल मे भी भारतीय स्कूलों का पठन-पाठन ऑनलाइन चला और विद्यार्थियों के अभिभावक भी पूर्णरूप से सहयोग किये।इससे छात्रों को बेहद फायदा पहुंच रहा है। छात्र घर बैठे ही ऑन डिमांड पठन-पाठन कर पाने में सफल हो रहे हैं। शिक्षण को जीवंत बनाने की भी जरूरत है। इसलिए कोरोना संक्रमण के स्थाई होने की दशा में शिक्षण और प्रशिक्षण विधियों में परिवर्तन किया जाना चाहिए। ऑनलाइन शिक्षण में पाठ्यक्रम के अनुरूप पाठ्य सामग्री न होने के कारण इसे समझने में बच्चों को परेशानी हो रही है।ऑनलाइन शिक्षा के लिए बच्चों के पास मोबाइल, लैपटॉप की व्यवस्था होनी जरूरी है।ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के तहत सिर्फ एक तरफा ही पढ़ाई हो पाती है। जानने व समझने की जिज्ञासा मन में ही रह जाती है। स्कूल की पढ़ाई से होने वाले नैतिक विकास में क्षीणता आ रही है। जिसका असर आचरण पर भी पड़ रहा है।शिक्षा को निरंतर रखने के लिए छात्र, शिक्षक व प्रशासन सभी को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।

तेज बहादुर मौर्य
बीएचयू

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