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बलात्कार एक ऐसा घिनौना कृत्य है,जिसके बारे में कई लोग बात करने से भी कतराते हैं..
यह न केवल जिस्म का होता है,वरन रुह का भी होता है। और जो इंसान इसे भोगता है,उस पीड़ित को न केवल परिवार, बल्कि पूरे समाज में उपेक्षा देखना पड़ती है,
इसीलिए सरकार को नोटबन्दी,जीएसटी के साथ इस पर भी सख्त कानून की दरकार है कि वहशी लोग इस अपराध के नाम से ही कांप जाएं। तो ‘मॉम’ बेहद संजीदा विषय को उतनी ही खूबसूरती से बयां की गई फ़िल्म है,जिसके लेखक गिरीश कोहली ने रिश्तों के ऐसे ताने-बाने बुने हैं,जो उनकी कलम की धार दिखा गए हैं। उतनी ही खूबसूरती से निर्देशक रवि उधयावर ने फ़िल्म के साथ न्याय किया है। बता दें कि श्रीदेवी का ये ५० वा बसन्त था फ़िल्मों में। उनकी पहली फ़िल्म १९६७ में तमिल कन्दन करुवर आई थी,जब वह केवल ४ साल की थी, और ये श्री की ३०० वीं फ़िल्म है। श्री भारतीय चित्रपट की लाजवाब अभिनय की समझ के साथ असीम गहराइयों तक छूने और किरदार को जीवन्त बना देने वाली अभिनेत्री है। अभिनय के हर रस श्रृंगार,हास्य, करुण,रौद्र,वीभत्स, भयानक,शांत,वीर में अंतगृह की कई गहराइयों तक रची बसी है ओर किरदार के साथ पूरा न्याय करते हुए सजीव चित्रण प्रस्तुत करती है।
फ़िल्म की कहानी देवकी सबरवाल जो सौतेली माँ है और उसकी युवा बेटी के रिश्तों की तकरार से शुरु होती है। इसमें श्री सबरवाल (अदनान सिद्दीकी पाकिस्तानी अदाकार) संजीदा अभिनय दिखा गए हैं। कहानी के अनुसार यहाँ
बेटी का दुष्कर्म हो जाता है,जो उसके ही साथी जगन(अभिमन्यु सिंह)एवं अन्य करते हैं।
अब माँ क्या करे? यह
एक बड़ा सवाल है कि,
पुलिस के पास तार-तार हुई इज़्ज़त लेकर जाए,या फिर कचहरी के गलियारों में मुहर्रिर की मुनादी पर बार-बार जवान बेटी की इज़्ज़त लुटते हुए बर्दाश्त करे,और इंसाफ की चाह में बची-खुची इज़्ज़त भी दांव पर लगा दे..या खुद इंसाफ के लिए खड़े हो जाए। इसमें माँ अपनी बेटी के इंसाफ के लिए खुद खड़ी होकर कमर कस के मैदान पकड़ती है। फ़िल्म में डिटेक्टिव ड़ी.के.(नवाज) से इनकी भेंट होती है और नवाज फ़िल्म की रफ्तार में चार चांद लगा देते हैं। एक दमदार ईमानदार पुलिसवाले के रुप में फ्रांसिस (अक्षय खन्ना) ने भी उम्दा अभिनय दिखाया है,लेकिन आजकल अभिनय से दूर क्यों रहते हैं,समझ नहीं आया।
फ़िल्म का अंत नहीं बता रहे हैं,क्योंकि उसके लिए फ़िल्म देखना चाहिए।
फ़िल्म में श्रीदेवी,नवाज, अक्षय,सेजल अली के साथ रहमान के संगीत ने न तो घड़ी देखने का वक्त दिया,और न ही कुर्सी छोड़ने का…।कुल मिलाकर शानदार विषय पर सुलझी हुई सटीक फ़िल्म है,जिसे देखना बनता है। इसके साथ ही
गेस्ट इन लंदन और स्पाइडरमेन भी प्रदर्शित हुई है,तब भी ‘मॉम’ भारी है।
#इदरीस खत्री
परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।
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