जब अपने मिल जाते है
खुशी से मन इतराता है।
छलक जाते है आँसू
पुरानी यादें आने पर।
खुशी के वो सारे पल
सामने आने लगते है।
और हम खो जाते है
उन बीते हुए दिनों में।।
भूलकर भी भूलता नहीं
उन बचपन के दिनों को।
जब किया करते थे हम
बहुत सरारते उन दिनों में।
अब याद उन्हें करके
खुद ही शरमा रहे है।
और अपने बचपन को
फिर से जिंदा कर रहे है।।
कार्य की व्यस्ता और जिम्मेदारियों ने
सभी कुछ भूलाकर रख दिया।
मानो खुशियों से हमारा
नाता ही छीन लिया।
तभी तो झूम उठाते है
जब कोई अपना मिल जाता है।
और बचपन याद आने लगा है
उनसे पुरानी बाते करने पर।।
जय जिनेंद्र देव की
संजय जैन (मुंबई)