चलो दिल्ली घेरें

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सबसे आसान काम है दिल्ली घेरना। जिसे देखो दिल्ली घेरने चला आता है।
इनदिनों अन्नदाता भी दिल्ली घेरने के लिए चले आये हैं और कह रहे है कि वे
अपनी मांगों के पूरी होने तक दिल्ली में डटे रहेंगे। डटे रहने तक लंगर का
भी पूरा इंतजाम उनके पास है। सरकार उनसे कह रही है कि जिस कानून को उसने
संसद से पास किया है उससे किसानों को पूरा फायदा होगा लेकिन किसान हैं कि
मानने को तैयार नहीं हैं। एक किसान ने तो यहां तक कह दिया कि जिस तरह से
हम खेतों की मेड़ घेरते हैं उसी तरह से दिल्ली को घेरेंगे। दिल्ली घिर
जायेगी तो समझो की सरकार घिर जायेगी। और सरकार घिर गयी तो समझो मांगें
पूरी हो गयी।
मैंने उससे कहा कि अच्छा है। कविवर गोपाल सिंह नेपाली ने भी अपनी कविता
में कहा है कि ’ ओ राही दिल्ली जाना तो कहना अपनी सरकार से, चरखा चलता है
हाथों से शासन चलता तलवार से।‘ लेकिन अब वैसी सरकार कहां रही जो चरखा भी
चलाये और तलवार भी। अब तो दिल्ली घेरते ही सरकार आंदोलनकारियों को वार्ता
के लिए बुला लेती है और किसी तरह उन्हें समझा-बुझाकर चलता कर देती है।
आंदोलनकारी समझते हैं कि सरकार उनकी मांगों के आगे झुक गयी है और वे खुष
होकर अपने गंतव्य की ओर रवाना हो जाते हैं।
अब किसान भी दिल्ली घेरने आये हैं तो वे भी खेतों की मेड़ की तरह दिल्ली
को घेर रहे हैं। देखना यह है कि वे कब तक दिल्ली को घेरे रखते हैं। खतरा
इस बात का भी बना हुआ है कि कहीं वे दिल्ली को खेत समझकर हल न चला दें।
अगर दिल्ली में हलचल गयी तो पूरे देश में हलचल मच जायेगी। तब विदेशी
मीडिया में खबरें चलेगी कि दिल्ली देश की राजधानी न होकर आंदोलनकारियों
की खेत हो गयी है जहां आंदोलन की आड़ में मांगों पर हल चलाया जाता है।
इसके बाद किसानों के आंदोलन का रुख क्या होगा कोई नहीं जाता। किसान कहीं
दिल्ली में पराली जलाने लगे तो दिल्ली के पर्यावरण का क्या होगा कोई नहीं
जानता।
खैर अब जब किसान दिल्ली आ ही गये हैं तो सरकार को चाहिए कि अन्नदाता की
जमकर स्वागत करे ताकि वे अपने गांव लौटें तो लोगों को कह सकें कि सरकार
ने उनकी जमकर आवभगत की।
वैसे मेरा मानना है कि दिल्ली घेरने और आंदोलन करने के लिए ही बनी है।
दिल्ली है तो आंदोलन है। दिल्ली है तो मांगें हैं। दिल्ली है तो
आंदोलनकारियों से विदेशी घिरी है। दिल्ली है तो नेताओं से घिरी है।
दिल्ली है जाम की समस्या से विदेशी है। दिल्ली है तो पर्यावरण की समस्या
से घिरी है। दिल्ली है तो कोरोना की समस्या से घिरी है। सारी समस्याओं की
जड़ दिल्ली है। समस्याओं का निराकरण भी यहीं से होता है और समस्याएं भी
यही पैदा होती हैं।

नवेन्दु उन्मेष
रांची(झारखण्ड)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।