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कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी है
जीने के लिए
दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए
छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए
:- आलोक कौशिक
संक्षिप्त परिचय:-
नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में दर्जनों रचनाएं प्रकाशित
बेगूसराय(बिहार)
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