न दिल भरता है
न प्रभु मिलता है।
बस चारो तरफ
अफरातफरी का माहौल है।।
न प्रश्न बचे है
न उत्तर मिले है।
प्रश्नों पर प्रश्न ही
लोगो ने खड़े किये है।।
न समानता पहली थी
और न आज है।
पर बाते समानता की
हमेशा होती है।।
पर समानता आज भी
लोगो से कोषों दूर है।
क्योंकि सोच आज भी
लोगो के दिल मे वही है।।
गुजरा समय लौटकर
कभी आता नहीं।
वाण बातों का भी
वापिस आता नहीं।।
पहले और अब में
क्या बदल गया है।
सोच विचारकर देखो
कुछ तो समझ आएगा।।
इंसान बदला है या
उस की फिदरत।
कुछ तो सही बोलकर
समाज को बताओ।।
सुखी थे तो दुख भी
एक दिन आना था।
कालचक्र को संसार मे
अब तो घूमना ही था।।
बदल गई बहुतों की
किस्मतो की लकीरें।
इस महामारी में भी
इंसानियत धर्मनिभा पाये।।
जन्म लेकर बहुत आते है
पर सफलता कुछ ही पाते है।
कुछ तो अच्छा करके भी
सुख नहीं पा पाते है।
शायद उनके पूर्व जन्म के
कर्म ही सामने आ जाते है।
जिसके चलते अपने को
असहाय ही पाते है।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)