गैर तो गैर,अपने भी अपने न हुए

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गैर तो गैर,अपने भी अपने न हुए,
जो जने थे अपने पेट से अपने न हुए।

क्या हाल सुनाऊं अपने दिल का,ये टूटा हुआ।
लिखा था जो मेरे भाग्य मे, वह भी फूटा हुआ।।
जो कभी सोचा था मैंने, वे पूरे सपने न हुए।
गैर तो गैर,अपने भी अपने न हुए।।

जिंदगी भी चार दिन की,कुछ तो गुजर गई।
बाकी जो कुछ बची है,वह भी बिखर गई।।
मिले जो दोस्त जिंदगी में,वे भी अपने न हुए
गैर तो गैर,अपने भी अपने न हुए।।

कितनी है मतलबी ये दुनिया,जब काम निकल जाएं।
पास नहीं फटकते है,वह दूर से नमस्ते कर जाए।।
दुनिया कमीनी हो गई,हम कमिने न हुए।
गैर तो गैर,अपने भी अपने न हुए।।

जो जैसा करेगा,वह वैसा ही भरेगा।
जो कुआं खोदेगा,वह उसमें ही गिरेगा।।
कुआं खोदते खोदते,जो उसमें ही दफन हुए।
गैर तो गैर ,अपने भी अपने न हुए।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

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