कैसा ये दौर आ गया है,
जिसमें कुछ नहीं रहा है।
और जिंदगी का सफर,
अब खत्म हो रहा है।
क्योंकि इंसानों में अब,
दूरियाँ जो बढ़ रही है।
जिससे संगठित समाज,
अब बिखर रहा है।।
इंसानों की इंसानियत,
अब मरती जा रही है।
क्योंकि इन्सान एकाकी,
जो होता जा रहा है।
सुखदुख में वह शामिल,
अब नही हो पा रहा है।
और अन्दर ही अंदर,
घुटकता जा रहा है।।
मिलते जुलते थे जहाँ,
रोज इंसान अपास में।
वो मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे,
अब बंद हो गये है।
मानो भगवान भी अब,
इंसानों से रूठ गये।
और उनकी करनी का
फल इन्हें दे रहे है।।
साफ पाक स्थान भी,
पवित्र नहीं बची है।
जिससे पाप बढ़ गए है,
और परिणाम सामने है।
क्यों दौलत की चाह में,
इंसान इतना गिर रहा है।
जिसके कारण ही उसे,
भगवान ने दूर कर दिया।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)