अष्टम अनुसूची की हिन्दी-हित में पुनः समीक्षा अपेक्षित है।

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विगत आधी सदी से भी कुछ अधिक अवधि से मैं अवलोकन करता आ रहा हूँ कि क्षेत्रीय बोली के नाम पर अधिकतर व्यक्ति, कुछ से कुछ लिखते हुए गुणवत्ता के प्रति सचेत नहीं रहते हैं। फलतः अपेक्षित स्तर का प्रायः अभाव रहता है। विषय-वस्तु, भाव एवम् भाषिक रूप से भी। और, इसीलिये; स्थानीय स्तर पर ही ऐसे लोग सिमट कर रह जाते हैं। कुछ कहने-बताने पर कुतर्क का सहारा लेने लग जाते हैं कि लोक भाषा है।  क्या, लोक भाषा में सामान्य बोल-चाल तथा साहित्य की भाषा में अन्तर नहीं होना चाहिये? परिनिष्ठितता का कोई स्थान नहीं?  जिन लोगों ने साधना की चाहे, वह कोई भी क्षेत्रीय बोली रही अथवा खडी़ बोली हिन्दी; उन्हें पर्याप्त यश प्राप्त हुआ।

 डा.परमानन्द पाण्डेय, प्रो. हरिमोहन झा, नागार्जुन ,रामेश्वर सिंह कश्यप इस बात के बहुत बड़े उदाहरण रहे । हिन्दी के उक्त महान् साधक, अंगिका, मैथिली और भोजपुरी की अनुपम पहचान बन कर अमर हो गये। क्षेत्रीय भाषाओं के साधकों को भी अवश्य ही सम्मान व पुरस्कार प्राप्त होना चाहिये। लेकिन, यह भी सत्य ही कि बरगद के नीचे कोई अन्य पौध पनप नहीं सकता। येन-केन-प्रकारेण, पौधा कोई पनप भी गया तो वह कुपोषण का शिकार हो ही जाता है। यों, प्रारम्भ से ही; सरकारी नीति बहुत स्वस्थ नहीं रही है। वोट – कुर्सी – सत्ता की सतायी हुई संस्कृति, संस्था एवम् साहित्य के मध्य, किसी भी भाँति ये, अर्थात् संस्कृति, संस्था, साहित्य जीवित बच रहे हैं तो साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार की अपनी मेधा, क्षमता, लगन और राष्ट्रीय तथा नैतिक ईमानदारी के बल पर ही।  वैसे,जो पत्र-पत्रिकायें, नायक-नायिकायें, गायक-गायिकायें, निर्माता-निर्देशक के साथ-साथ नेतागण तक जो हिन्दी में आये, वे अधिक प्रसिद्ध हुए। 

अनावश्यक को अष्टम अनुसूची तथा आवश्यक की उपेक्षा से असंतोष तो पनपेगा ही ना, नीति-नीयत बदलनी होगी।  अष्टम अनुसूची की हिन्दी-हित में;पुनः समीक्षा हर हाल में अपेक्षित है।  मैं किसी के पक्ष या विपक्ष की बात नहीं कह रहा। मैं तो बिल्कुल वही कह रहा हूँ, जो तटस्थ भाव से एक भारत-भक्त को कहना चाहिये। फिर भी, यदि मेरा कथन किसी को चोट पहुँचाता हो तो, विनम्रतापूर्वक क्षमा-याचना ।। –ओम प्रकाश पांडेय

  वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।