वैश्विक हिंदी ई-कवि सम्मेलन के मंच पर, हिंदी और हिंद-प्रेमी कवियों ने छेड़ी कविता की तान।

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देश और दुनिया की विभिन्न कोनों से देश और देश की भाषा के प्रति समर्पित कई भारत भाषा सेनानी कवि वैश्विक ‘हिंदी ई- कवि सम्मेलन’ के मंच पर आए तो उनकी रंग-बिरंगी स्तरीय कविताओं और गीतों ने समां बांध दिया और हिंदी साहित्य के वैश्विक पटल पर एक यादगार कवि सम्मेलन अपनी छाप छोड़ गया। कवि सम्मेलन में उपस्थित प्रायः सभी कवि ऐसे थे जो कि मूलतः विभिन्न क्षेत्रों के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित सफल व्यक्ति और विद्वान हैं। जो अपने मूल कार्य के साथ-साथ हिंदी, हिंदुस्तान और हिंदी साहित्य का ध्वज भी थामे हुए हैं। इनकी सीने में हिंदुस्तान बसता है, इसलिए हिंदी और हिंदी का साहित्य भी बसता है।

कवि सम्मेलन के प्रारंभ में ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की संयोजक’ डॉ. सुस्मिता भट्टाचार्य ने सर्वप्रथम देश विदेश के तमाम प्रतिष्ठित साहित्यकारों, कवियों और श्रोताओं का शब्द-पुष्पों से सम्मान किया। उन्होंने ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ की ओर से सभी कवियों और श्रोताओं से यह अनुरोध किया कि वे जहां कहीं भी हों, अपनी भारतीय भाषाओं को बचाने और बढ़ाने के लिए एक सेनानी की भांति अपना अधिकतम योगदान प्रदान करें और इसके लिए हर संभव उपाय करें ताकि भारतीय धर्म-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान और भारतीयता की रक्षा की जा सके। तत्पश्चात उन्होंने हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के प्रयोग व प्रसार को आगे बढ़ाने के लिए ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन’ के उद्देश्य तथा संस्था द्वारा किए जा रहे कार्यों की संक्षिप्त जानकारी भी प्रदान की ।
काव्य संध्या का आगाज़ उड़ीसा राज्य के कटक से उपस्थित कवि डॉ अमूल्य रत्न मोहंति ने किया। डॉ अमूल्य रत्न महांति कटक के कॉलेज में हिंदी के विभागाध्यक्ष हैं। इन्होंने आठ से अधिक पुस्तकों की रचना की है और पन्द्रह से अधिक पुस्तकों का हिंदी से उड़िया और उड़िया से हिंदी में अनुवाद भी किया है। ये वार्ता वाहक नामक पत्रिका के सह संपादक भी हैं।

इसके आगे की शुरुआत सुदूर पूर्व में सूर्योदय के राज्य अरुणाचल प्रदेश से उपस्थित डॉ. जमुना बीनी ने की। उऩ्होंने बहार और आदिवासी नामक अपनी कविता में अरुणाचल के जनजीवन को बहुत ही खूबसूरती से कविता में उकेरा। डॉ. जमुना बीनी अरुणाचल प्रदेश के राजीव गांधी विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर है। गद्य और पद्य में इनकी अनेक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदीतर भाषी होने के बावजूद इनकी कविताएं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एम.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल है।

कवि सम्मेलन को आगे बढ़ाते हुए गाजियाबबाद, उत्तर प्रदेश की कवयित्री शैलजा सिंह ने अपने मधुर गीतों से समां बांध दिया। शैलजा सिंह अपने मधुर गीतों के लिए जानी जाती हैं। इसके उतिरिक्त वे मुक्तक छंद कविताएँ भी रचती हैं। वे आकाशवाणी, दूरदर्शन सहित विभिन्न राज्यों में विभिन्न मंचों पर अपनी रचनाओं का रस बिखेरती रही हैं। उनके श्रंगारिक गीतों ने कवि सम्मेलन में समां बांध दिया। उनका गीत , जादुगरनी हूं, मैं जादू कर दूँगी… ने कवि सम्मेलन में बहुत धूम मचाई।

अगले कवि थे ऑस्ट्रेलिया से डॉ. सुभाष शर्मा ने अपनी कविता, हिंदी पर अभिमान करें से श्रोताओं को प्रेरित व अभिभूत किया। डॉ. सुभाष शर्मा ने दिल्ली आईआईटी के पूर्व विद्यार्थी ही नहीं, 15 वर्ष तक वहां के प्रोफ़ेसर भी रह चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया की सेंट्रल क़्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में मैनेजमेंट विभाग के अध्यक्ष हैं। वे समर्पित हिंदी सेवी तथा एक बहुत ही अच्छे कवि हैं। वे ऑस्ट्रेलिया में हिंदी की काव्यधारा को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं।

इसके पश्चात इंग्लैंड से पधारे कवि कृष्ण कन्हैया ने कुछ मुक्तक पढ़े और फिर गज़ल – किताबी जिंदगी और उसके बाद चंदाममा नामक कविता ने श्रोताओं का मन मोह लिया। अंग्रेजों के देश में हिंदी के तराने गाने वाले वरिष्ठ कवि कृष्ण कन्हैया पेशे से डॉक्टर हैं और हृदय से कवि हैं। गीत, गज़ल ही नहीं ये समसामयिक विषयों पर भी कविताएं रचते हैं।

अमेरिका से कवि सम्मेलन में सम्मिलित कवि डॉ.अशोक सिंह ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को लुभाया। उनकी. ग़ज़ल – जिसको देखा ही नहीं, उससे निभा ली हमने और गीत – हसरतें जब जवान होती हैं ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ.अशोक सिंह पेशे से तकनीकी वास्तुविद हैं, लेकिन हृदय से कवि हैं। इनके कई काव्य संग्रह और गजल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ये अमेरिका में तरंग काव्य-गोष्ठी के संस्थापक हैं और वहाँ हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

महाराष्ट्र मुंबई से उपस्थित हैं। कवि आलोक अविरल जी‌ ने अपनी कविता में मानवीय संवेदनाओं को अनुभूति के स्वर दिए। उनकी कविताएँ – .
एक मन ग़रीब मेरे तन में चुपचाप एकाकी बैठा है और किलकारी का सफ़र ने समां बांध दिया। आलोक अविरल जहां एक ओर कॉर्पोरेट जगत में मार्केटिंग और ब्रांडिंग के वरिष्ठ कार्यपालक हैं, वहीं हिंदी भाषा और साहित्य के प्रतिबद्ध सेनानी और मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं।

इसके पश्चात कवि सम्मेलन में राम-कृष्ण और भारतीय गौरव को अपना काव्यमय स्वर दिया डॉ. आशीष कंधवे ने। डॉ. आशीष कंधवे एक प्रतिष्ठित साहित्यकार तो हैं ही वे अनेक वर्षों से आधुनिक साहित्य पत्रिका प्रकाशित कर हिंदी साहित्य को संपन्न बनाते रहे हैं और भाषाई संघर्ष में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। डॉ. आशीष कंधवे भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा वैश्विक स्तर पर प्रकाशित गगनांचल पत्रिका के संपादक भी हैं।

अंत में मैं वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक, भारत भाषा प्रहरी, कवि लेखक और काव्य संध्या के संचालक डॉ एम. एल. गुप्ता ‘आदित्य’ ने अपनी कविता किसने फैलाई है यह खबर कि रावण गया है मर.. से श्रोताओं को रोमांचित किया।

अंत में काव्य संध्या के अध्यक्ष डॉ सुधाकर मिश्र ने अपनी कविताओं से कवि सम्मेलन को शिखर पर पहुंचा दिया। उनकी कविता बेटी ने श्रोताओं का भीतर तक छू लिया। डॉ सुधाकर मिश्र राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भारत के वरिष्ठ साहित्यकार हैं। इन्होंने रामोदय जैसे खंडकाव्य सहित विभिन्न काव्य पुष्पों से साहित्य जगत को संपन्न बनाया है।

कवि सम्मेलन का संचालन वैश्विक हिंदी सम्मेलन के निदेशक डॉ. एम.एल. गुप्ता आदित्य ने किया।

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