कर्मशाला से विदाई का
अब समय आ गया।
तो दिलकी धड़कने
बहुत तेजी हो गई।
और अपनो के प्यार के लिए
दिल बहुत तड़पने लगा।
साथ जिनके काम किया
अब उनसे विदा ले रहा हूँ।
और अपनी नई जिंदगी में
प्रवेश करने जा रहा हूँ।।
कितना उतार चढ़ाव भरा रहा
मेरा कार्य क्षेत्र का सफर।
जिसमें कितने पराये अपने बने,
और कितने अपने हमसे रूठ गये।
जो रूठे वो अपने थे और
जो पराये थे वो अपने बने।
आज मेरा कर्मशाला से
जिंदगी के सफर का अंत हो गया।।
सीने में कुछ दर्द अब
हमेशा के लिए दफन हो गये।
मेरी जिंदगी में नई सोच का
अब उदय हो गया।
और उनकी साजिशों का भी,
आज पर्दा फाश हो गया।
चलो अच्छा ही हुआ जो
समय से पहले हम निकल लिए।
और अपने और परायों का
आज से खेल खत्म हो गया।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)