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अलगू,धनिया,होरी
प्रेमचंद के किरदार
ईदगाह, गुलीडण्डा
याद आ गया गोदान
दो बैलो की जोड़ी से
लमही बन गई महान
जन्म भूमि देख मुंशी की
मन मेरा हर्षित हुआ
प्रेमचन्द का प्रेम वहां
कलम हिलोरे ले वहां
माथे रज लगा लमही की
जीवन धन्य हुआ मेरा
साहित्य सम्राट के गांव मे
मन प्रसन्न हुआ मेरा
आत्मबोध मे रहूं सदा
परमात्मा का हो आभास
प्रेमचंद जैसी कलम चले
रचनाओं की हो बरसात।
#श्रीगोपाल नारसन
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