पृथ्वी हूं ,
सूर्य की परिक्रमा को , भला छोड़ दूं कैसे ?
पाती हूं जीवन तुमसे, जीवन को भला छोड़ दूं कैसे ?
तेज से तुम्हारे ,बोती हूं नए ख्वाबों को
पाती हूं एहसासों की फसल को
फसल को भला छोड़ दूं कैसे ?
चलती हूं संग तुम्हारे ,कदमों को तन्हा भला छोड़ दूं कैसे ?
जीती हूं पल-पल की विविधता,ऋतुयों कीभला छोड़ दूं कैसे?
पाती हूं होली तुमसे, रंगों को भला छोड़ दूं कैसे ?
सजते हैं सुर तुमसे, वीणा के तारों को भला छोड़ दूं कैसे?
चलते हैं काफिले तुम्हारे संग
अभिव्यक्ति को भला छोड़ दूं कैसे ?
गूंजती है शहनाई तुमसे ,साज को भला छोड़ दूं कैसे? खुशबू से तुम्हारी महकता है उपवन
उपवन को भला छोड़ दूं कैसे ?
कटती है तनहाइयां तुमसे ,संवादों को भला छोड़ दूं कैसे ?
खनकती है चूड़ियां तुमसे
चमकता है सिंदूर तुमसे
महकती है मेहंदी हाथों की
माथे की बिंदिया को भला छोड़ दूं कैसे ?
थिरकते हैं अरमान दिल में
छुअन को तुम्हारी भला छोड़ दूं कैसे ?
तुम ही बताओ अब
पृथ्वी हूं
सूर्य की परिक्रमा को भला छोड़ दूँ कैसे?
#स्मिता जैन