कदम्ब की डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।
सुख – दुख में शुभ गीत गाने वाली।
थके मादे लोगों को झुमाने वाली।।
इस डाल से उस डाल पर डोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।
नीरस पल में भी रस पाने वाली।
ऋतुराज के संदेश को पहुंचाने वाली।।
रसाल फल देख चोंच खोलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।
पतझड़ की महफिल में लाती बहार।
‘सावन’ सरस भाव से भावनाओं का भार।।
कंठ के तराजू पर तौलती कोयल।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।
पीपल की डाल पर डोलती कोयल है।
पीऊ- पीऊ, कुहू- कुहू बोलती कोयल।।
सुनील चौरसिया ‘सावन’
टेंगा वैली (अरुणाचल प्रदेश)