(मधुगीति १७०४१५ अ)
कोई मिल पल में चल देता,
कोई कुछ वर्ष संग देता;
जाना सबको ही है होता,
मिलन संस्कार वश होता।
विदा क्षण-क्षण दिए चलना,
अलविदा कभी कह देना;
यही कर्त्तव्य रह जाता,
मुस्करा भाव भव देना।
चले सब जाते अपनी धुन,
झाँकते चलते दे चितवन;
नज़र में रखें निज मंज़िल,
कभी उर्मिल कभी धूमिल।
लौट कोई प्राय आ जाता,
मास वर्षों में कोई आता;
जन्म या युग कोई लेता,
कोई हमको बुला चहता।
जाना जब हमको है होता,
द्वार कोई और ही रहता;
तटस्थित ‘मधु’ उर रहता,
लोक-परलोक लख चलता।
#गोपाल बघेल ‘मधु’
परिचय :५००० से अधिक मौलिक रचनाएँ रच चुके गोपाल बघेल ‘मधु’ सिर्फ हिन्दी ही नहीं,ब्रज,बंगला,उर्दू और अंग्रेजी भाषा में भी लिखते हैं। आप अखिल विश्व हिन्दी समिति के अध्यक्ष होने के साथ ही हिन्दी साहित्य सभा से भी जुड़े हुए हैं। आप टोरोंटो (ओंटारियो,कनाडा)में बसे हुए हैं। जुलाई १९४७ में मथुरा(उ.प्र.)में जन्म लेने वाले श्री बघेल एनआईटी (दुर्गापुर,प.बंगाल) से १९७० में यान्त्रिक अभियान्त्रिकी व एआईएमए के साथ ही दिल्ली से १९७८ में प्रबन्ध शास्त्र आदि कर चुके हैं। भारतीय काग़ज़ उद्योग में २७ वर्ष तक अभियंत्रण,प्रबंधन,महाप्रबंधन व व्यापार करने के बाद टोरोंटो में १९९७ से रहते हुए आयात-निर्यात में सक्रिय हैं। लेखनी अधिकतर आध्यात्मिक प्रबन्ध आदि पर चलती है। प्रमुख रचनाओं में-आनन्द अनुभूति, मधुगीति,आनन्द गंगा व आनन्द सुधा आदि विशहै। नारायणी साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)और चेतना साहित्य सभा (लखनऊ)के अतिरिक्त अनेक संस्थाओं से सम्मानित हो चुके हैं।