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टांग पकड़े-पकड़े झम्मन सीधे पिताश्री के पास पहुंचे और बोले-हमारी जात कौन-सी है ? पिता समझदार थे, झम्मन की तरह उज्जड़ नहीं थे। धीरे से बोले-तुझे जात से क्या करना ?
झम्मन ने बोलना शुरू किया-अरे गलती से गुजरात की सरहद में पहुंच गया। पहला प्रश्न-केम छो। हमने भी कह दिया,मजा म छे। इससे ज्यादा गुजराती आती नहीं,आगे हकला गए। दूसरा प्रश्न सुनते ही हमारा माथा ठनका-सीधे हिन्दी में पूछा-किस जाति के हो। भैया हो क्या,यहां पर तो चुनाव चल रहा है। पहले जाति बताओ,फिर आगे जाओ। अगर जात नहीं मालूम तो सीधे वापस जाओ। यहां बिना जात बताए तो कुत्ता भी नहीं भोंकता। पहले जात पूछता है, फिर कहता है-अच्छा तुम उस जाति के हो,तुम्हारे पीछे उसी जाति के कुत्ते लगेंगे। अब तो कुत्ते भी गुजराती सीखने लगे हैं, बेचारे डर के मारे और क्या करेंगे। अगर गुजराती नहीं सीखी तो भैया कुत्ता कहलाएंगे। जाति भी गुजराती होनी चाहिए। चरित्र भी गुजराती,और तो और भगवान भी गुजरात का ही होना चाहिए। उत्तर और दक्षिण के भगवान नहीं चलेंगे। यानी हर चीज गुजराती होनी चाहिए।
झम्मन ने तैश में कहा-हम तो हिन्दुस्तानी हैं, भारतीय हैं। कुत्ता काटने के लिए लपका,वो तो खैर मनाओ कि,झम्मन की टांग बच गई। गुर्राते हुए बोला-यहां तू अपनी जात बता। चुनाव में इन तीनों जातियों को कोई नहीं पहचानता। ये बता बामन,बनिया,पाटीदार,ठाकुर,दलित में से कौन-सा है। इन जातियों में से हैं तो बात कर,नहीं तो दूसरी टांग के लेने के देने पड़ जाएंगे। टांग बचाते हुए झम्मन भागते हुए मंदिर की ओर भागा। कुत्ता भौंका,बोला-मस्जिद, चर्च,गुरुद्वारा,कहीं भी मत्था टेक,लेकिन ध्यान रखना, `टीआरपी` तो भगवान की ज्यादा है। भगवान बैंक में इस बार नए-पुराने `मत` भरे पड़े हैं। भगवान की साख ज्यादा है, लेकिन भगवान के यहां घुसने के पहले जाति बताना होगी और न-न करते कुत्ते ने झम्मन की टांग मुंह में दबा ली। झम्मन ने दूसरी लात का इस्तेमाल कर अपनी टांग तो छुड़ा ली,लेकिन इलाज के लिए रुपयों का इंतजाम कर दिया। तू कोई नेता है,जो हर स्थान पर जाएगा। किसी एक स्थान पर जा,जिससे ये मालूम पड़े जात क्या है और कौन-से बैंक में तेरा मत खाता है। मत खाते में रकम नहीं हुई,तो जुर्माना लग जाएगा।
झम्मन वहां से भीगी बिल्ली की तरह अपनी सीमा में घुस आए। गुजरात में विकास की आंधी आई है। इस आंधी में मंदिर ही मंदिर दिखाई दे रहे हैं। कौन,कितना बड़ा मंदिरवादी है या फिर कौन-सा अतिवादी है,बस कपड़े उतरवाने की कसर बाकी है। हर कोई मंदिरवादी बनने के लिए उतावला नजर आ रहा है।
इस चुनाव में भगवान के भाव बढ़ गए हैं। भगवान के भाव प्याज से प्रतियोगिता कर रहे हैं,तो प्याज,टमाटर से और टमाटर गरीबी से पंगा ले रहे हैं। गरीबी ही तो है,जिसका कर्ज माफ नहीं होता। गरीबी इतने सालों से आत्महत्या का प्रयास कर रही है,लेकिन ऐसी कोई रस्सी नहीं बनी जो उसे जंतर-मंतर पर लटका सके। पहले तो फिल्मों ने भगवान के भाव बढ़ाए,अब ये चुनाव भगवान को सातवें आसमान पर बिठा रहे हैं। भगवान ही जाने-कौन असली मंदिरवादी है।
जब उल्लू के बुरे दिन आते है तो मंदिर की ओर भागता है। मंदिर को उजाड़ने के लिए मंदिर की टोंक पर बैठता है। सदभाव उजाड़ने के लिए उल्लू मंदिर पहुंच रहे हैं। गुजरात चुनाव,मंदिर चुनाव बन गया है। राम मंदिर की आस्था अब गुजरात में समा गई लगती है। हर बगुला मंदिर के आगे एक टांग पर खड़ा है। हर आने-जाने वाले को अंधभक्त बनाने का प्रयास कर रहा है। कुछ अंधे साथ में कुछ मंदिर के बाहर। देंखे कौन असली मंदिरवादी है,यह चुनाव के बाद भी नहीं मालूम पड़ेगा कि कौन-सा बगुला भगत है और कौन भगवान भगत।
#सुनील जैन ‘राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl
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