चित्रगुप्त…!
“गुप्तचरों से पता चला है कि वन के सारे घास फूस और छोटे पेड़ पौधे सूख रहे हैं इंद्रदेव को वर्षात के लिए धन का आवंटन तो कर दिया था न?”
“हां महाराज बीस लाख करोड़ का पैकेज जारी किया था। जो कि कुबेर की पूरी संपदा का दस फीसदी है।”
“तो फिर गड़बड़ी कहाँ हुई? इंद्रदेव को तलब किया जाय”
हड़ हड़ घड़ घड़ करते हुए थोड़ी देर में ही इन्द्रदेव का प्रवेश होता है। उनके साथ कई आदमी भी आये थे जिनके सिरों पर भारी भारी बक्से लदे हुए थे।
“मैंने तो तुम्हें ही बुलाया था इंद्रदेव! बारिश के बारे में थोड़ी जानकारी लेनी थी पर तुम अपने साथ इतने आदमियों को क्यों लाये हो?” धर्मराज ने इंद्रदेव को देखते ही प्रश्न किया।
“महाराज की जय हो मुझे मालूम था इसीलिए तो पूरे रिकॉड्स के साथ आया हूँ। दरअसल ये जो लोगों के सिरों पर बक्से लदे हैं उनमें जारी किये गये सभी मदों से संबंधित फाइलें बंद हैं जिनमें एक एक पल का हिसाब लिखा है। सागर देवता से पानी लेने की एक एक दिन की रशीद और बादल महाराज ने कहाँ कहाँ पानी बर्षाया उसकी एन ओ सी सब साथ में अटैच्ड है।” इंद्रदेव ने आगे बढ़ते हुए शाष्टांग होकर अपनी बात रखी।
“लेकिन घास फूस तो पानी के बिना त्राहिमाम कर रहे हैं इंद्रदेव हम तुम्हारी फाइलों रशीदों और एन ओ सी को लेकर क्या करें…?”
लेकिन महाराज मेरा काम पानी बरसाना था वो मैंने किया है मेरे काम में अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है तो मैं सजा लेने के लिए तैयार हूं।
महाराज ने जांच करवाने के लिए इंद्रदेव के सारे बक्से रखवा लिए और आगे की कार्यवाही के लिए गुप्तचरों को भूलोक पर भेज दिया।
दो दिन बाद पहले गुप्तचर ने आकर सूचना दी “महाराज धरती वालों का कहना है कि बादल जितना गरजते हैं उतना बरसते नहीं…। कई बार तो ये जाते हैं और ऐसे ही गरज घुमड़कर वापस आ जाते हैं।
थोड़ी देर बाद ही दूसरे गुप्तचर का प्रवेश हुआ “महाराज की जय हो सागर देवता के हवाले से खबर ये है कि इंद्रदेव एक लीटर पानी लेते हैं है सौ लीटर की रशीद बनवाते हैं। जिसके बदले में वे सागर देवता को हीरे मोती और बड़े बड़े उपहार देते हैं। जो थोड़ा बहुत पानी लेकर बादल आते भी हैं तो वे सबसे पहले बैकुंठ धाम में बरसाते हैं फिर जो बचता है वो धरती लोक तक पहुंचता है।” धर्मराज दूसरे गुप्तचर की बातें सुन ही रहे थे कि तीसरे का भी प्रवेश हुआ।
“महाराज की जय हो जंगल के हवाले से खबर ये है कि धरती के बड़े बड़े पेड़ों जैसे पीपल बरगद पाकड़ आदि ने अपनी पत्तियां कीप नुमा कर ली हैं जिससे बर्षात का सारा पानी वो इकट्ठा कर ले रहे हैं और उसका फायदा अन्य छोटे पेड़ पौधों को नहीं मिल पा रहा… वे सूख रहे हैं।
गुप्तचरों की बातें धर्मराज और चित्रगुप्त दोनों बैठकर आराम से सुन रहे थे। कुछ सोचकर धर्मराज ने इंद्रदेव द्वारा लाये गये बक्सों में से एक को खोलने का आदेश दिया। पूरा बक्सा ही बादल देवता के ट्रेवल अलाउंस क्लेम के कागजों से भरा हुआ था। पूरब से लेकर पश्चिम उत्तर से लेकर दक्षिण हर जगह की यात्रा का ब्यौरा टिकट समेत चस्पा था। दूसरा बक्सा खुला उसमें सागर द्वारा प्रदत्त रशीदों को संलग्न किया गया था। तीसरा खुला … चौथा खुला…. सारे कागजाद जांच लिए गए लेकिन उनमें कोई कमी नजर न आई।
“ये तो सारे ठीक ही हैं न चित्रगुप्त?” धर्मराज ने पूछा
“कागज एक दम सही है महाराज हर फाइल के ऊपर सालाना आडिट का स्टाम्प भी लगा हुआ है।”
“अगर सब कुछ ठीक ही है तो प्रजा में इतना असंतोष क्यों है। हमें और क्या करना चाहिए जिससे प्रजा की ये समस्या दूर हो”
“महाराज मुझे लग रहा है कि प्रजा को हमारी योजनाओं और किये गये काम की जानकारी नहीं है। इसीलिए वो इतना हल्ला मचा रहे हैं।”
“तो फिर इसके लिए क्या करना चाहिए।”
“प्रेस कांफ्रेंस करनी चाहिए महाराज…..और हमें प्रजा को बताना चाहिए कि हमने उनके ऊपर कितना खर्च किया है।”
चित्रगुप्त
ग्राम जलालपुर
पोस्ट कुरसहा
जिला बहराइच
उत्तर प्रदेश