कब तक खून चढ़ेगा यारों, नक्सलवाद की रोटी पर।
क्यों नहीं आग लगा देते तुम,इनकी अब लँगोटी पर।।
सुकमा पूरा दहल गया है,नक्सल दहशतगर्दी में।
आग लगाई जा रही है,चौराहे पर वर्दी में।।
एक सर्जिकल करके तुम,पूरी दुनिया में घूम रहे।
घर की आग बुझाओ पहले,किस मस्ती में झूम रहे।।
पत्थर की बरसात हुई है,कश्मीर की घाटी में।
नदियों जैसा खून बह गया,भारत माँ की माटी में।।
छब्बीस-छब्बीस मौतों पर,दिल्ली चुप्पी साधे बैठी है।
लाल किले के ऊपर चढ़,चादर ताने लेटी है।।
सड़कें पूछ रही है तुमसे,कब तक लाल रहूँगी मैं।
अपने वीर जवानों का,कितना दर्द सहूँगी में।।
हवा झुलस रही है यारों,मार-काट आवाजों से।
दिन-दहाड़े गोली चलती,दुश्मन के दरवाजों से।।
शासन तेरा,गद्दी तेरी,सब कुछ तुम्हारे पास है।
गद्दारों के घर में जाता क्यों,नहीं तेरा प्रकाश है।।
मैं पूछ रहा हूँ ऐसी घटना,बार-बार क्यों होती है।
ये दिल्ली वाली कुर्सी हमेशा, ऐसे ही क्यों सोती है।।
सरकार बदल जाती है यारों, सरदार बदल भी जाते हैं।
ना जाने क्यों देश के मेरे,हालात बदल नहीं पाते हैं।।
हाथ खोल दो सेना के तुम,अब जंग का ऐलान करो।
जो करना है आज करो,सब कुछ खुलेआम करो।।
#विवेक चौहान
परिचय : विवेक चौहान का जन्म १९९४ में बाजपुर का है। आपकी शिक्षा डिप्लोमा इन मैकेनिकल है और प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी में नेपाल में ही कार्यरत हैं। बतौर सम्मान आपको साहित्य श्री,साहित्य गौरव,बालकृष्ण शर्मा बालेन्दु सम्मान सहित अन्य सम्मान भी मिले हैं। आपके सांझा काव्य संग्रह-साहित्य दर्पण,मन की बात,उत्कर्ष की ओर एवं उत्कर्ष काव्य संग्रह आदि हैं। आप मूल रुप से नई कालोनी (चीनी मिल कैम्पस) बाजपुर (जिला ऊधमसिंह नगर,उत्तराखण्ड)में रहते हैं।