सुख से सम्बन्धित बातें तो बहुत सारी की जा सकती हैं लेकिन कुछ बातें अनुभव की करी जाए तो उसका आनंद अलग है । लोग कहते है कि आंखों देखी और कानों सुनी बात में ज़मीन और आसमान का अंतर आ जाता है, लेकिन आज जो बात है वो अनुभव की बात है । वो ज़मीन और आसमान के बीच की बात है, इसमें आंख और कान दोनों गवाह है पर मुंह कुछ कहने की स्थिती में नहीं है । विद्ववानों ने इस संसार के लिए सात सुख बताएं हैं । ये वे सात सुख है जो रहे तो मनुष्य के जीवन में जीने के लिए उत्साह बना रहता है। लेकिन सात को छोड़ दे तो आठवां सुख सब पर भारी हैं, जिसे लाख दुखों की एक दवा भी कह दो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इस सुख का आनंद व्यक्ति खुद ले सकता है और दूसरे को जी भरके चिढ़ा सकता है । वो सुख है बहरा होने का सुख ! जी हॉ बहरा होने का सुख !!
आप अभी अच्छे से सुन रहे है तो आपको बहरा होना सुख नहीं समस्या लगता है, एक बार जानबूझ कर बहरा हो जाएँ, फिर देखिए ,क्या मजा आता है । बरसात के दिनों में ठंडी हवा के साथ सर्दी के कारण कानों में बहरापन आना कईं लोगों के साथ होता है । जब आदमी बहरा हो जाता है तो सबसे पहली चिंता पत्नी को होती है, जो आपकी उपस्थिती में दिन रात नॉनस्टाप बोलती रहती है,और आप सुनते रहते है, आपके बहरे होने पर वो बोलने से पहले सौ बार सोचेंगी कि अब उसकी सुनेगा कौन? घर में शांति का वातावरण । पत्नी और बच्चों की फरमाइश बंद । कहेंगे ये सुनते तो है नहीं , इनसे सिर खपाने की बजाए खुद ही अपनी जरुरत की चीज ले आओ । आपका टेंशन खत्म ।
ऑफिस में पहुंचों और बॉस कुछ बोले और न सुनाई दे तो एक -दो बार वो खीज़ कर बोलेगा लेकिन जब पता चलेगा की आप बहरे हो गये है तो केवल जरुरी काम पर्ची पर लिख कर देगा, आवाज लगाकर नहीं बुलाएगा, सोचेगा इस बहरे को काम बताने के बजाए किसी दूसरे को काम दे दूँ ताकि दिमाग का दही नहीं हो।
बाज़ार में जाओ तो लोग पहले तो सामान्य स्वर में आपके प्रश्न का उत्तर देंगे जब आप हे..हे करेंगे तो जोर से बोलेगें आप ने कहॉ ठीक तो ठीक वरना चीखते हुए बोलेंगे और अड़ोस-पड़ोस के लोग उसे देखेंगे आपको नहीं और कहेंगे इतनी जोर से क्यों बोल रहे है ।फिर वो इशारे में आपको समझाने की कोशिश करेगा और समझा भी देगा ।
राजनीति करने वाले हमारे आदरणीय नेतागण तो बहरे हो कर ही राजनीति में प्रवेश करते है ।वे केवल बोलते हैँ, सुनने की क्षमता तो वे पुरी तरह खो चुके है । चुनाव के पहले और चुनाव के बाद कितने ही आरोप-प्रत्यारोप लगे वे सब कुछ अगल-बगल से निकाल देते है। जब पानी सिर से उपर निकलने लगता है तो कोई चमचा बंद कमरें में कुछ इशारों में नेताजी को समझाता है और नेताजी समझ जाते है । लेकिन वे बहरे ही रहना पसंद करते है। उनको पता है जो बात वे सुनेंगें उसका जवाब देना होगा। याने जो नहीं सुने वो सब गुने। अगर आप भी गुणवान बनना चाहते तो बहरे बन कर जीवन में आठवें सुख का आनंद लिजिए।
#संदीप सृजन
उज्जैन