भगवान का दूसरा रुप हैं माँ,
उसके लिए दे देगें जान..
हमको मिलता जीवन उनसे,
कदमों में हैं स्वर्ग बसा।
संस्कार वह हमें सिखलाती,
अच्छा-बुरा हमें बतलाती..
हमारी गलतियों को सुधारती,
प्यार वह हम पर बरसाती।
तबियत अगर हो जाए खराब,
रात-रात भर जागते रहना..
माँ बिन जीवन है अधूरा,
खाली-खाली,सूना-सूना।
खाना पहले हमें खिलाती,
बाद में वह खुद है खाती..
हमारी खुशी में खुश हो जाती,
दुख में हमारे आँसू बहाती।
कितने खुशनसीब हैं हम,
पास हमारे हैं माँ..
होते बदनसीब वे कितने,
ज़िनके पास न होती माँ।
#रुपेश कुमार
परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।
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