याद आते हैं वो दिन सुहाने,
बचपन के वो पल मस्ताने।
मोहल्ले भर में था हुड़दंग,
मैं भी मिला था सबके संग।
जब भी कोई खिड़की टूटती थी,
हमें अपनी जीत दिखती थी।
रोज रहता था छुट्टी का इंतजार,
आता था जब इतवार।
न भूख हमको सताती,
न प्यास की परवाह थी।
वो कंचों की धूम गली में,
और लट्टू का खेल हमारा।
सब बीत चुका,सब छूट चुका,
न वो खेल बचा, न वो प्रेम दिखता।
आज तो गली में एक ही नजारा है,
‘जिओ’ ने अपना डेरा जमाया है।
अब वो दोस्त कहां,वो दिन कहां,
गर है मोबाईल,तो सब तुम्हारे हैं।
#प्रमोद बाफना
परिचय :प्रमोद कुमार बाफना दुधालिया(झालावाड़ ,राजस्थान) में रहते हैं।आपकी रुचि कविता लेखन में है। वर्तमान में श्री महावीर जैन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय(बड़ौद) में हिन्दी अध्यापन का कार्य करते हैं। हाल ही में आपने कविता लेखन प्रारंभ किया है।