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करते हैं व्यवहार जो,आशा के विपरीत।
खो देते हैं एक दिन,वे अपनों की प्रीत॥
सिर्फ वही विद्वान है,जिसको है ये ज्ञात।
कौन समय पर कौन-सी,उचित रहेगी बात॥
घर आए महमान का,जो करता अपमान।
क्या उसका साहित्य है,वो कैसा विद्वान॥
बस उनके वक्तव्य ही,होते हैं अनमोल।
समय परख कर बोलते,हैं जो अपने बोल॥
मर्यादाएं लाँघते,जो जन बारम्बार।
वे पा सकते ही नहीं,जनमानस का प्यार॥
देने से मिलता सदा,दुनिया में सम्मान।
स्वाभिमान तो पालिए,ठीक नहीं अभिमान॥
जिसने सीखा ही नहीं,सामाजिक विज्ञान।
किसी काम का ही नही,उस मानव का ज्ञान॥
जब मन में पलने लगे,कुंठा या विद्वेष।
फिर व्यवहारिकता नहीं,रहती मन में शेष॥
बंसल इस संसार में,सखा उसी को जान।
वक्त पड़े हर हाल जो,रखे सखा का मान॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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