शक्ति स्वरूप नारी

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न क्रुंदन करती ना ही चित्कार करती
कभी न किसी को वो तिरस्कार करती।

रूप बदलकर आती, सभी अवस्थाओ में

वो तो सिर्फ हृदय से, हमें प्यार करती।

शक्ति की प्रगाढ़ता, जीवन की मौलिकता
आधार बनकर जीवन में वास करती।

सच्चाई की मिशाल, विश्वास में विशाल
छल कपट भी, मुस्कुरा के टाला करती।

वो काया कितनी महान, जिसमें सारे गुण
पर मानवता, इनका दिल तोड़ा करती।

बड़ा शर्मसार होना पड़ता देश को
जब दरिंदगी भी यहाँ निवास करती।

न्याय के लिए सच और झूठ तौला जाता
वेतुके तर्क से इन्हें और टाला करती।

शक्ति की धरोहर की यह पीड़ा
जब हद से पार हुआ
फांसी पर लटका दो
संसद के दोनों सदनों से पास हुआ।

धरती हो या अम्बर जुल्म नही चलेगा
नारी शक्ति के आगे फांसी नहीं टलेगा।

“आशुतोष”

नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
पटना ( बिहार)
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति

                      

matruadmin

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