मत जात पात की आग में झोंको मेरे देश को
नेताजी पहनके खादी मत लजाओ बापू के भेष को
तुम भूल गये कितनी दीं कुर्बानियां आजादी की खातिर
माँ भारती के लिए हंसते-हंसते कट गये हजारों हजार सिर
आज हम आजादी का इतिहास भुला बैठे हैं
कुर्सी, पद, पैसा की खातिर जमीर मार बैठे हैं
कोई धर्म – मजहब नहीं बुरा, सब अच्छे हैं
बस इंसान ही इंसानियत से कच्चे हैं
राजनैतिक मंचों से जहर उगला जाता है
फिर जनता को आपस में लड़ाया जाता है
वोट बैंक की खातिर झूँठ पर झूँठ परोसा जाता है
बार-बार हर बार वोटर को ही ठगा जाता है
राजनीति चमकाने को और कुर्सी बचाने को
बलात्कार के केस दबाये जाते हैं, इज्जत बचाने को
धर्म, मजहब, जात पात से ऊपर है देश
संसद में घुस गये शैतान बनाकर साधु भेष
दुर्भाग्य देश का एक लुटेरा जाता है और दूसरा आता है
फिर नित लूट-लूटकर भारत को कंगाल बनाया जाता है
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
फतेहाबाद, आगरा