इंसान की औलाद हो,
इंसान तुम बनो।
इंसानियत को दिलमें,
अपने जिंदा तुम रखो।
मतलब फरोश है दुनियाँ,
जरा इससे बचके रहो।
लड़वा देते है अपास में,
भाई बहिन को।
ऐसे साँपो से,
अपने आप को बचाओ।।
कितना कमीना होता है,
लोगो ये इंसान।
सब कुछ समझकर भी,
अनजान बन जाता है ये।
औरो के घर जलाओगें तो,
एकदिन खुद भी जलोगें।
फिर अपनी करनी पर,
तुम बहुत पसताओगें।
और अपनों की नजरों में,
खुद ही गिर जाओगें।।
जो अपनो का न हुआ,
वो गैरो का कैसे होगा।
इंसान की औलाद है,
फिर भी जानवर बन गया।
जानवर तो अपास में,
हिल मिलकर रहते है।
इंसान होते हुए भी,
जानवर से गाये गुजरे बन गये।
और इंसान कहलाने का,
हक भी खो दिया।।