मेरे दिल मे बसे हो तुम,
तो में कैसे तुम्हे भूले।
उदासी के दिनों की तुम,
मेरी हम दर्द थी तुम।
इसलिए तो तुम मुझे,
बहुत याद आते हो।
मगर अब तुम मुझे,
शायद भूल गए थे।।
आज फिर से तुम्ही ने,
निभा दी अपनी दोस्ती।
इतने वर्षों के बाद,
किया फिरसे तुम्ही याद।
में शुक्रगुजार हूँ प्रभु का,
जिन्होंने याद दिला दि तुमको।
की तुम्हारा कोई दोस्त,
आज फिर तकलीफ में है।।
में कैसे भूल जाऊं,
उन दिनों को में।
नया नया आया था,
तुम्हारे इस शहर में।
न कोई जान न पहचान,
थी तुम्हारे इस शहर में।
फिर भी तुमने मुझे,
अपना बना लिया था।।
मुझे समझाया था कि,
दोस्ती कैसी होती है।
एक इंसान दूसरे का,
जब थाम लेता है हाथ।
और उसके दुखो को,
निस्वार्थ भावों से सदा।
करता है उन्हें जो दूर,
वही सच्चा दोस्त होता है।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।