एक ख्वाहिश निकली है दिल से

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sakshi

एक ख्वाहिश निकली है दिल से,
कि छू लूं यह आसमान संग ज़मीं केl
बन जाऊं मैं ज़िन्दगी,ज़िन्दगी की,
हो न जाऊं इस दुनिया की प्रीत से दूर मैं..
बस मिटा दूँ हर दुःख को इस ज़मीं से मैंl
एक ख्वाहिश निकली है दिल से,
समेट लूँ  हर ख़ुशी अपने आँचल मेंl
दिखला दूँ  इस दुनिया को जीत के,
हर मुश्किल को कर दूँ आसान मैं..
कि हर मुश्किल भी कह दे-हूँ आसान मैं,
एक ख्वाहिश निकली है दिल से,
कुछ न हासिल है आज मुझकोl
फिर भी खोने को हिम्मत है मेरी..
हिम्मत से बनी है मेरी आशाएं,
आशाओं से बनी है मेरी ज़िन्दगी..
ज़िन्दगी से बंधी हूँ आज मैं,
मुझसे बना है संसार ये..l
एक ख्वाहिश निकली है दिल से,
जीवन को जीऊँ  मैं स्वाभिमान सेl
अभिमान को बदलूँ स्वाभिमान में,
स्वाभिमान से जो जीवन मैं जीऊँगी..
न लूंगी किसी का अहसान मैं,
न रहूंगी ज़िन्दगी की कर्ज़दार मैंll

                                                          #साक्षी पेम्माराजू  ‘स्वप्नाकाक्षी’

परिचय : बैंगलोर में निवास कर रही साक्षी पेम्माराजू  ‘स्वप्नाकाक्षी’ का इंदौर से भी नाता है,क्योंकि मध्यप्रदेश के झाबुआ से इन्होंने अपनी पढ़ाई की है। बचपन से हिन्दी में कविताएँ लिखने का इनका शौक अब तो जुनून है,जो स्वप्नाकशी नाम से देखने में आता है। फिलहाल यह सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के रुप में कार्यरत हैं।

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