किश्तो में सही मुहब्बत को तू कर्ज देकर जाए ।
सूद समेत लौटाउगी थोड़ी सी मोहलत भी तू दे जाए
वक्त भी है फुर्सत भी है कुछ वादा करके ही जाए
पुरानी पड़ी दिल में यादों को ताज़ा करके जाए
मुझे क्या पता वो लौट कर आए या ना आए
हमेशा कहकर जाता मगर जरूर आएगा
इंतजार में अब घडियां भी बीतने लगी
सोचती काश !यूँ ही कभी कहीं दिख जाएगा ।
इसी अहसास में उम्र भी बीतती रही
दुरियां बढ़ती मगर धडकनो में समाएगा
मुहब्बत का अंजाम बहुत जालिम है
काश!ये अंजाम मुझे क्या कोई समझाएगा
दर्द भरी जिंदगी में अब तकलीफें बहुत
किस तरह दिल मेरा ये गम अब भुलाएगा।
अब मुहब्बत में गुमराह जब कर ही दिया
जीत हो या हार दिल यूँ ही
मुसकुराएगा
संध्या चौधुरी उर्वशी
राँची, झारखंड
परिचय-
बतौर लेखिका एवं कथक नृत्यांगना आप कार्यरत है, आपकी शिक्षा एमए (मनोविज्ञान) में हुई। कई सम्मान से सम्मानित संध्या चौधुरी की रचनाएँ कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है।