बुजुर्गों के शोषण पर अट्टहास क्यों?

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aashutosh kumar
फायदे की बात तो सभी करते है बहती गंगा में डूबकी सभी लगाना चाहते हैं आखिर क्यो नही चाहेंगे जब गंगा ही उल्टी बह जाय और लोगो को मुर्ख बनाकर अपना काम निकाल लिया जाय विडम्बना तो तब होती है जब परिवार के लोग भी ऐसा करते है ।आज की सामाजिक परिस्थितियाँ कुछ ऐसी ही है। मुझे याद आ रहा है बचपन के दिन जब मै छोटा था गाँव में एक बुधन चाचा हुआ करते थे हाथ मे छडी और आँखो पर चश्मा चढ चुका था लेकिन फिर भी कुदाली चलाते थे।मेरे घर के पास ही उनकी खेत थी जो उन्होंने बटाई पर ले रखी थी । मै बुधन चाचा से काफी घुल मिल गया था और वो भी अक्सर मेरे यहाँ आ जाते थे कभी पानी पीने, तो कभी चाय पीने चाय के लिए तो वो, घंटो इंतजार कर लेते थे ।मै बच्चा था लेकिन उनका पसीने से लथपथ भींगा बदन देखकर पूछ लेता था बूधन चाचा! ये बुढ़ापा में तुम कुदाली क्यों चलाते हो? वो बोलते तो कुछ नही लेकिन आँख से आँसू टपक पडते! मेरे समझ में कुछ नही आता और मै खेलने में व्यस्त हो जाता।मैने मन में सोचा एक दिन मै जानकर रहूँगा कि बुधन चाचा आखिर इतना काम इस उम्र मे क्यों कर रहे है और पूछने पर रोते क्यों हैं ? एक दिन सुबह-सुबह वो मेरे आंगन मे बैठे थे। माताजी चाय बना रही थी तो मैने कह दिया बुधन चाचा आज बताना पडेगा नही तो मै चाय लेकर भाग जाऊँगा। बुधन चाचा झिझक कर बोले नही ऐसा नही मेरी माँ भी मुझे डाट दी और मै कुछ न कर सका बुधन चाचा भी खेतो मे काम करने लगे लेकिन मैने ठान लिया था सो मै उनके पास गया और बोला! चाचा बताव ना! आखिर तुम्हारी क्या मजबूरी है नही बताओगे तो मै तुमसे कभी बात नही करूँगा ? बुधन चाचा को डर सा लग गया प्यार का डर, दरअसल इस उम्र में प्यार से बोलने वाला ही सब कुछ होता है, इन्सान के लिए, तो वो बोले! बौआ ई खेत इतना नही पूरा ताभेंगे तो मेरे बच्चे और बहू मुझे खाना तक नही देगे  और कल भी वही होगा और उनके आँखो से आँसू की धारा प्रवाहित होने लगी।मै भी उनके साथ रोने लगा।और आकर माँ को सारी बात बतायी। दरअसल बुधन चाचा के दो पुत्र थे और दो बहुएँ थी पुत्र और बहु अपनी मर्जी के मालिक थे कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन बुधन चाचा की उपेक्षा और यातनाएँ उन लोगो की दिनचर्या में शामिल था। खेतो का सारा काम बुधन चाचा ही सम्भालते थे फसल उन्हीं लोगो को देकर पूरे वर्ष एक-एक पैसे के  मोहताज रहते थे।मैने चाचा से कहा तुम फसल उपजाते हो अपने पास रखो और उन लोगो की मर्जी के वगैर चलकर देखो तो कितना सकून मिलेगा।बूधन चाचा पहले तो कुछ हिचकिचाये लेकिन बोले खेतों मे फसल उपजाने के पैसे कौन देगा?तो मैने कहा मेरी माँ से ले लो ? कहो तो मै माँ से बात करू ?फिर मैने माँ से बात की तो माँ ने चाचा की मदद कर दी फसल बोने के बाद बुधन चाचा घर नही जाते खेतो में रहते मेरे खेतो की देखभाल करते और वहीं झोपडी बनाकर सो जाते उनकी मेहनत रंग लायी खेत फसल और हरियाली से भरे थे  पैदावार अच्छी हुई अब बुधन चाचा कभी घर जाने का नाम नही लेते हैं और अब उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी है वो कुदाली भी नही चलाते मजदूर या ट्रेक्टर से खेतो की जुताई कर लेते हैं ।कहने का तात्पर्य है बहती गंगा शोषण की कब तक बहती रहेगी बुजुर्ग उपेक्षा के शिकार कबतक होते रहेगें? क्या इस तरह की उल्टी गंगा का बहना बंद होगा कभी या नही? न जाने कितने बुघन चाचा जैसे बुजुर्ग इस समाज में शोषण के शिकार है शहरो मे तो कई बुजुर्ग आश्रम मे रह रहे है  और गाँव में खेतो पर लेकिन लोक लाज के कारण जुवान नही खोलते कोई पूछता भी नही और जीते जी उनकी जिन्दगी मौत से भी बदतर हो जाती है ।बुजुर्गो के पारिवारिक राजनीतिक और सामाजिक शोषण पर बेटों और बहुओं का यह  कैसा अट्टहास और कब तक? किसी माँ-बाप को या बुजुर्ग को  प्रताड़ित होकर अपना घर छोड़ना पड़े और समाज के प्रभावशाली लोग भविष्य के संबंध का हवाला देकर हस्तक्षेप न करे तो यह सोचने की जरूरत है कि समाजिक सम्बन्धों में  कितनी मानवता और संवेदनायें बची है।
वृद्धावस्था शारीरिक असहायता का प्रतीक है। यह वह समय होता है जब व्यक्ति को सर्वाधिक मानसिक संगति की जरूरत होती है। भागदौड़ भरी जिंदगी में कोई ठिठक कर किसी बुजुर्ग को कुछ देर के लिए सुन भी ले तो उनकी धुंधली दृष्टि में बसंत महकने लगता है। वे लोग खुशकिस्मत हैं जिनके पास इस उम्र में भी अपने जीवनसाथी के सुख का साथ है। लेकिन ऐसा सुख कितने लोगों को नसीब है! हो सकता है कि कुछ मुद्दों पर किन्हीं परिवारों में कुछ बुजुर्गों का रुख अतार्किक हो। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम उन्हें अपने जीवन से इस तरह निकल जाने को मजबूर कर दें।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।