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बारिश हो जाये,गर्मी तो बहुत है |
लोगो के जमीर पर,धूल बहुत है ||
लगता है गुलाब सभी को अच्छा |
पर उसके दामन में सूल बहुत है ||
जिन्दगी जीते है,लोग अपने हिसाब से |
पर जिन्दगी जीने के लिये रूल बहुत है ||
भूल जाता है,इंसान अपनी भूलो को |
पर हर जिन्दगी में तो भूल बहुत है ||
क्यों तोड़ते है लोग फूल अपनी पसंद का |
जबकि इस गुलशन में तो फूल बहुत है ||
सोते है सभी खाट पर आराम के लिये |
पर कभी सोचा है,खाट में चूल बहुत है ||
#आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)
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