कोई तो हमको समझाये, होती कैसी दीवाली!
तेल नदारद दीया गायब, फटी जेब हरदम खाली।
हँसी नहीं बच्चों के मुख पर,चले सदा माँ की खाँसी।
बापू की आँखों के सपने, रोज चढ़ें शूली-फाँसी।
अभी दशहरा आकर बीता,सीता फिर भी लंका में।
रावण अब भी मरा नहीं है, क्या है राघव-डंका में!
गिरवी माता का कंगन है, बंधक पत्नी की बाली।
कोई तो हमको ……………..!
राशन पर सरकारें बनतीं, मत बिकते हैं हाटों में।
संसद की हम बात करें क्या, तन्त्र बँटा है भाटों में।
ईद गई बकरीद गई औ, तीन तलाक बना मुद्दा।
सवा अरब की आबादी, पर लावारिस दादी दद्दा।
मिडिया का कुछ हाल न पूछो,लगे हमें माँ की गाली।
कोई तो हमको………………!
अगर मान लो बात हमारी, दिल को दीप बना डालो।
सत्य धर्म ममता निष्ठा को, मीठा तेल बना डालो।
नाते रिश्तों की बाती में, स्वाभिमान-पावक भर दो।
जग में उजियारा फैलाये, ऐसी दीवाली कर दो।
ऐसे दीप जलायें मिलकर, कहीं न हों रातें काली।
कोई तो हमको………………!
# डॉ अवधेश कुमार अवध