सुनो गुलाब,
और सारी फुलवारी से पूछ के बताओ…
तुम तो अधपीली दूब को सिहुलकर,हरे रोपे गए थे न |
तो तुम लाल कैसे हुए….!
तुम बकलोल हो-असहिष्णु हो ?
तुम्हें पता नहीं, ‘हरा रंग किनका` है ?
इधर,
बद्तमीज गेंदा भी
‘पीला’ हो गया
पवित्र पीला…!
क्यों भला ?
क्या इसलिए,
कि,तुम कलम से काटे गए,
और तुरन्त घोंप दिए गए धरती में
रो भी न सके भर आँख
और रक्त तुम्हारा
रिस के लाल फुला गया…!
या,
तुम खिसिया गए हरे रंगी आक़ाओं पर
और,
तिलमिला कर ललचा गए।
अब जो भी हो
मगर,
हरे से लाल…
क्या तुम बताना चाह रहे
कि रंग होता ही नहीं,
जताना चाह रहे
कि
हमें दृष्टि दोष है…||
#शाश्वत उपाध्याय
परिचय: शाश्वत उपाध्याय उत्तरप्रदेश के बलिया जिले में रहते हैं l आप बीएससी में अध्ययनरत हैंl बीएचयू में शताब्दी वर्ष पर ‘युवा कवि संगम’ तथा वाराणसी कला मेले सहित कई काव्य मंचों से काव्य पाठ कर चुके हैं।