गये थे आज मंडी में
लेने को कुछ फूल।
वहां जाकर देखा तो
एक दम दंग रह गए।
की जो फूल लेने को
हम वहां गए है।
वो सारे फूल पहले से
पैरों में पड़े हुए है।
अब में कैसे उन्हें लू
और प्रभु के चरणों मे
कैसे चढ़ाऊँ।।
सही में लगता है कि
किसी कोई कीमत नही।
सभी चीजों को लोगो ने
व्यापार जो बना लिया।
तभी तो फूल जैसा नाजुक
पड़ा है लोगो के पैरों में।
जब प्रभु को ही नही बख्शा,
तो हम तुम की क्या औकात है।।
इसलिए आज कल
नही दिखते है प्रभु।
क्योकि मंदिरों को भी
लोगो व्यापार बन लिया।
अब रहेगी कैसे आस्था लोगो की प्रभु में।
जो पूजा की भी सूची
लगा दी है मंदिरों में।।
गए थे फूल लेने को,
पर खाली हाथ वापिस आ गए।
नही चढ़ाना अब प्रभु को,
फूल और पैसे भी।
जो करते थे खर्च हम,
इन सब चीजों में।
वो पैसे से अब किसी,
बच्चे को हम पढ़ाएंगे।
और उसे एक नेक
इंसान हम बनायेगे।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।