`आधुनिकीकरण` से आर्थिक गुलामी

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sunil patel

देश की सरकार को कोसते,अर्थव्यवस्था को चौपट करने की कोशिश करते,रुपए की घटती कीमत का ठीकरा दूसरों  पर फोड़ते और स्वदेशी उत्पादों का मजाक बनाते लोगों को तो हम सबने कहीं-न-कहीं देखा और सुना होगा,क्योंकि  ये वही लोग हैं,जो `आधुनिकीकरण`(मॉडर्नाइजेशन) की छाप लगवाने के लिए विदेशी कम्पनियों के शो-रुम में स्वयं  सेवा के नाम पर पैसे देकर भी बोझ ढोने के लिए लम्बी-लम्बी कतार लगाने को अपनी शान समझते हैं। मातृभाषा हिन्दी बोलने में इनको शर्म आती है,पर दूसरों की मातृभाषा,टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलने में ये अपनी शान समझते हैं। गन्ने का रस नहीं,इन्हें कोक पीना है,प्यार से बनी पूरी-भाजी नहीं,इन्हें पिज्ज़ा-बर्गर खाना है। गीता,क़ुरान,भजन नहीं,बल्कि इन्हें यो यो हनी और मुन्नी बदनाम सुनना है। अपनों का गला काटकर विदेशियों के खाते भरने से पहले इतना तो सोच लीजिए कि,सिक्का भले खोटा सही,मगर अपना तो अपना होता है। हमारे पूर्वजों ने 200 साल जिन फिरंगियों की यातनाएं सहीं और जिनसे अपने वतन को आज़ाद कराने में हजारों कुर्बानियां दी तो क्या इसलिए कि, हमारी आने वाली पीढ़ी फिर से इस पश्चिमी सभ्यता की गुलाम हो जाए। अरे आधुनिक होने का मतलब ये नहीं कि, हम अपनी सभ्यता,संस्कार और जड़ों को भूल जाएं। फेसबुक पर पसंद  का बटन दबाते-दबाते हम बुजुर्गों के पांव दबाना भूल गएl जिन्हें जानते नहीं,उनसे रिश्ते बनाने के चक्कर में अपने बने हुए रिश्तों को निभाना भूल गए, जस्टीन बीबर,किम करदाशियां को याद करते-करते शायद हम अपने आज़ाद-भगतसिंह को भूल गए,हॉलीवुड और डिज़्नी देखते-देखते रामायण-महाभारत को भूल गए,महंगे डिस्को,रेस्त्रां में पैसा उड़ाते-उड़ाते गरीबों की सेवा करना भूल गए और सच में तो आधुनिक बनते-बनते शायद हम असल भारतीय बनना भूल गए हैं।
मेरे प्यारे देशवासियों जागो,मतलब के इस बाज़ार में बिकने से पहले अपने देश के बारे में सोच लो। कड़े संघर्षों से मिली इस आज़ादी को फिर इस विदेशी बाजार में नीलाम मत करोl ये आर्थिक गुलामी हमारे देश के अपने किसान, व्यापारी,मजदूर और गरीबों के लिए अभिशाप बन रही है। जितना हो सके स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल करें और देश के विकास में सकारात्मक योगदान दीजिएl
                                                                            #सुनील रमेशचंद्र पटेल
परिचय : सुनील रमेशचंद्र पटेल  इंदौर(मध्यप्रदेश ) में बंगाली कॉलोनी में रहते हैंl आपको  काव्य विधा से बहुत लगाव हैl उम्र 23 वर्ष है और वर्तमान में पत्रकारिता पढ़ रहे हैंl 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।