जब सीखा था बोलना,
और बोला था माँ।
जो लिखा जाता है,
हिंदी में ही सदा।।
गुरु ईश्वर की प्रार्थना,
और भक्ति के गीत।
सबके सब गाये जाते,
हिंदी में ही सदा।
इसलिए तो हिंदी
बन गई राष्ट्र भाषा।।
प्रेम प्रीत के छंद,
और उसी के गीत।
गाये जाते हिंदी में,
अपनी प्रेमिका के लिए।
रस बरसाते युगल गीत,
सभी को बहुत भाते।
और ताजा कर देते,
अपनी पुरानी यादें।।
याद करो मीरा सूर,
और करो रसखान को।
हिंदी के गीतों से बना,
गये इतिहास को।
युगों से युगों गाते
आ रहे उनके हिंदी गीत।
गाने और सुनने से,
हृदय हो जाता पवित्र।।
मेरा भी आधार है,
मातृभाषा हिंदी ।
जिसके कारण मुझे,
मिली अब तक ख्याति।
इसलिए माँ भारती को,
सदा करता हूँ नमन।
हिंदी के द्वारा ही संजय,
लिख पा रहा अपने गीत।।
हिंदी दिवस पर मेरी ये कविता आप सभी के लिए समर्पित है।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।