खिड़की`:सुख दुःख की सहेली

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krunal

एक तू ही तो है,

मेरी सुख दुःख की सहेली..

तू ही तो सुनती है,

मन की बात…

सखी खिड़की।

जैसे ही खोलती हूँ,

मेरी बंद सासें चलने लगती हैं..

मेरे सपनों की,

भीतर और बाहर भी

तू ही गवाह है।

रोज़ सुबह सूरज संग मिलाती,

रात चाँद संग सुला देती..

जब भी होती दुःखी,

तुझ संग बैठ घंटों..

मैं राह निहारती

भीगे नयनों संग,

तुझसे ही फ़रियाद करती।

कुछ खट्टे-कुछ मीठे पलों को,

तुझ संग बाँटती मैं..

राह देखन पियन की मैं

मेरी तन्हाई…

तेरे साथ गुजारती,

एक तुम  ही तो हो,

उदास ज़िन्दगी में

सुख-दुःख की सहेली

#कृनाल प्रियंकर

परिचय : कृनाल प्रियंकर गुजरात राज्य के अहमदाबाद से हैं और स्नातक(बीकॉम)की पढ़ाई  पूरी कर ली हैl  आप वर्तमान में ग्रामीण विकास विभाग(गुजरात) में कार्यरत  हैंl  इन्हें शुरु से ही कविताओं से विशेष लगाव रहा है,तथा कविताएं पढ़ना-लिखना बेहद पसंद है

matruadmin

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3 thoughts on “खिड़की`:सुख दुःख की सहेली

  1. वाह
    बहुत खूबसूरत कृणाल….
    घर की चारदिवारी में कैद ,पिया के विरह में, अपने एकाकीपन की सखी खिड़की से संवाद…. सराहनीय है ।
    रिया हरप्रीत

  2. Well done krunal..
    Awesome writing. .
    Wishing you luck. …
    And many more to come..

    Best wishes. ..

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