मोहल्ले के कोने में, रहती थी एक `ख़्वाहिश` हर शाम पुकारती खिड़की पर होकर खड़ी, सपने ले लो, हसीन तड़कते-भड़कते जादुई सपने, इतनी भीड़ में कौन सुने उसकी पुकार, गलियों की हलचल में अक्सर दब जाती उसकी आवाज़, सजने से पहले ही बिखर जाता मानों सपनों का संसार, घर की […]