न खेती है , न बारी है , न घर है।
फिर भी देखो कितना महँगा वर है।।
मन में उमंग नहीं ,जीने का ढंग नहीं।
जीवन के सागर में एक भी तरंग नहीं।।
सभ्यता-संस्कार नहीं, सोच में निखार नहीं।
आपस में प्यार नहीं, शिक्षित परिवार नहीं।।
काला अक्षर भैंस बराबर है।
फिर भी देखो कितना महंगा वर है।।
दुल्हन एम. ए. पास हो, एकदम झकास हो।
दुनिया हो मुट्ठी में, पाँव तले आकाश हो।।
रूप की रानी हो, गंगा का पानी हो।
हीरा हो,मोती हो, सोना हो,चानी हो।।
‘सावन’ सजना से सजनी सुन्दर है।
फिर भी देखो कितना महंगा वर है।।
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)