प्रिय की यादों में खोकर,
जब रोने का मन होता है..
छिप-छिप अश्रु बहाता हूँ।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ, बस यही झमेला होता है..
औरों की बातें झुंझलाहट दे जाती हैl
मन जस-तस बहलाता हूँ.
छिप-छिप अश्रु बहाता हूँ।
उसकी यादों का जाल सदा चौतरफा मेरे होता है,
रोम-रोम मेरे तन का तड़पन में उसकी रोता है..
खुशियों के रंगमंच का पर्दा गिरता है,
पुस्तक के पृष्ठों में चेहरा देखता हैl
गीत प्यार के गाता हूँ..
छिप-छिप अश्रु बहाता हूँ।
#महेंद्र मिश्र ‘मोहित’