बहुत जी चुके इन वीरानों में,बस साँसों का जाना बाकी है,
इस सूने आगार में दिल के तेरा आना बाकी है..।
बाकी है तेरे हाथों से कुछ जाम सुनहरी रातों में,
बाकी है विलय मेरा हो जाना,तेरी झील-सी गहरी आंखों में,
हाथों में लेकर हाथ वो चलना,पथरीली पंगडंडी पर
भरी दोपहरी में खेतों पर तेरा खाना लाना बाकी है ..।
छुअन से तेरी इस काया में झंझावत-सा उठ जाना,
झड़ते आँखों से मोती तेरे, मुझे पिरोने बाकी है …।
करके वादा फिर आएंगे तेरा जल्द चले जाना,
चादर की सिलवटों मे तेरी ख़ुशबू आना बाकी है …।
हसती आँखों ने यूं तेरी,जो गमों के सागर बांधे हैं,
रखकर इन कंधों पर सर तेरा, तुझे सुलाना बाकी है….।
सज़ा रखा है हर कमरों में,चिलमन तेरे विचारों का,
हर कलियाँ और फूल खिले हैं,बस हमारा मिलना बाकी है ….।
मैंने तो इस ढलते जीवन का सार तुझी में पाया है,
और एक तू है,तुझे अभी मुझे जानना भी बाकी है …..
#सुमित अग्रवाल
परिचय : सुमित अग्रवाल 1984 में सिवनी (चक्की खमरिया) में जन्मे हैं। नोएडा में वरिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत श्री अग्रवाल लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य,कविता,ग़ज़ल के साथ ही ग्रामीण अंचल के गीत भी लिख चुके हैं। इन्हें कविताओं से बचपन में ही प्यार हो गया था। तब से ही इनकी हमसफ़र भी कविताएँ हैं।