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नित चमन के फूलों को मसल कर
आंगन की बगिया ही उजड़ रही
मिलता क्या है ऐसे कुकर्मो से
नन्हीं-नन्ही बिटिया सिमट रही।
अभी चलना भी नही
सीखा था उसने
बोलती भी अधूरी ही थी
कैसे कैसे जुल्म किए तूने
सारी मानवता ही हिल रही
अक्ल के दुश्मन तुझे दया न आयी
नन्ही सी जान पर कितने सितम ढायी
रो गया धरती अम्बर, रोया सारा जहाँ
क्यूँ-क्यूँ तेरे चेहरे पर शिकन न आई।
क्यों ऐसे काले लोग खुला घूम रहे
छोटी छोटी जान को ही ढूँढ रहे
बदल डालो सजा देने के तरीके
सलीके से ऐसे लोग नही सम्भलते।
जधन्यता की पराकष्ठा
कब तक मासूम झेलेंगे
ढूँढकर ऐसे लोगो का
सामाजिक वाहिष्कार हो
फांसी से भी बढकर भी
सजा का अधिकार हो।
ऐसी सजा हो जिससे
थर थर कांपे रूह
कोई नजर न उठा सके
जब भी देखे वह सजा का रूप।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति
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