खामोश! प्रयोग जारी हैं

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pradeep upadhyay
यह तो सामान्य सी बात है और सभी को पता होना चाहिए लेकिन नहीं, शायद आम आदमी इन गहरी बातों को नहीं समझ सकता और नही मुझ जैसे मूढ़ मति के व्यक्ति को यह बात समझ में आ सकती है लेकिन जब एक इन्जीनियरिंग का छात्र रह चुका नेता किसी बात को समझा रहा है तो मानना पड़ेगा ।उनकी बात में दम है।जब विज्ञान के प्रयोग कुछ निश्चित सिद्धांतों के बाद भी असफल हो जाते हैं तब कभी एक इंजीनियरिंग का रहा छात्र राजनीति में कोई प्रयोग कर असफल हो जाए तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है!इसपर ऊंगली नहीं उठाई जाना चाहिए।वह भी तब जबकि अनिश्चय के बादल छा रहे हों,विपरीत प्रकृति और विपरीत ध्रुवों का सम्मिलन हो रहा हो,तब प्रयोग की सफलता पर संशकित होने वालों की बात तो छोड़िये जनाब ,प्रयोगकर्ता ही कहाँ स्वयं के प्रति भरोसेमंद हो सकते थे।

निश्चित रूप से सभी जानते हैं और मानते भी हैं कि हरेक प्रयोग की सफलता की गारंटी नहीं ली जा सकती है।लेकिन यही सब सोच समझकर यदि प्रयोग करना ही बन्द कर दिया जाए तब तो हो गया कल्याण! बिना जंग लड़े भी कभी जीत हांसिल हुई है! डॉक्टर तक अपने मरीजों पर प्रयोग करते हैं, मरीज उनके साथ अपनी जिंदगी की जंग लड़ते हैं, प्रयोग सफल रहा तो जय-जय वरना तो राम नाम सत्य है ही।किसी का भाग्य तो किसी का दुर्भाग्य!

अब जबकि उन्होंने अपने बापू को मनाकर जैसे तैसे कोई प्रयोग क्या कर लिया,असफल होने पर भाई लोग तो हाथ धोकर ही पीछे पड़ गए और जगहँसाई शुरू हो गई।क्या कभी आपका पाला किसी भविष्यवक्ता से नहीं पड़ा!ग्रह शांति के उपाय के लिए आज यह प्रयोग तो कल वह प्रयोग, सफलता-असफलता हरि इच्छा!मुझे लगता है कि दुनिया में दो ही ऐसे प्राणी है जो उद्धारक की श्रेणी में रखे जा सकते हैं जिनकी जरूरत कदम दर कदम हरेक आदमी को पड़ती है क्योंकि मनुष्य और सुख का आपस में बैर भाव लगता है जबकि दुख उसका हमसाया बना रहता है जिससे छुटकारे की चाह में भविष्यवक्ताओं की शरण में जाना पड़ता है।ठीक इसी तरह निरोगी काया सदैव नहीं रहती और रोगी काया खटिया पकड़ाती रहती है, डॉक्टर की शरण अवश्यंभावी!

हाँ, तो बात इन दो प्राणियों की, एक ज्योतिषी यानी भविष्यवक्ता और दूसरा डॉक्टर।वैसे प्रयोगवादियों की अन्य श्रेणियाँ भी हैं ,इन्जीनियर के अलावा वकील भी ,लेकिन इनके पास एक बार जाने के बाद इंसान दूसरी बार जाने से तौबा कर सकता है किन्तु जगत में ये दो प्राणी ऐसे हैं जिनसे तौबा कर ही नहीं सकते।लगता है कि कहीं ऊपर वाला अपने से ही तौबा न कर ले!ये चाहे जितने प्रयोग पर प्रयोग करते चले जाएं, अधिकांश प्रयोग तो असफल ही होते हैं।फिर भी सफल प्रयोग की आस में इनसे गठबन्धन तो चलता ही रहता है,एक नहीं तो दूसरा, दूसरा नहीं तो तीसरा! यानी प्रयोग अवश्यंभावी है।मौसम वैज्ञानिकों के असफल प्रयोगों और भविष्यवाणियों की तरह ही ये भी इंसान की चाह और आस को जगाए रहते हैं।तब फिर उन्होंने क्या गुनाह किया है!वे भी प्रयोग करते हैं, करते रहेंगे।कभी तो प्रयोग सफल होंगे।

डॉ प्रदीप उपाध्याय
देवास,म.प्र.

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