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उसुल ईमान धरम सब बाजार हो गया
सत्तापक्ष का गुलाम अखबार हो गया।
जिसने रोते चेहरे पे कभी हंसी लाई नही
पता नही वो कैसे क्या पत्रकार हो गया।
जिंदगीभर रहे जिसके दो नम्बर के धंधे
वो आदमी समाज का सरदार हो गया।
साथ बैठ पुलिस के खाते पीते देखा है
जाने वो अपराधी कबसे यार हो गया।
संजय चल रहा है लोगो की साजिशों मे
जबसे सच बोल रहा है दिवार हो गया।
संजय अश्क ,पुलपुट्टा,बालाघाट
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