भक्तयांजलि में अवगाहन

0 0
Read Time8 Minute, 11 Second
IMG_20190513_172325
“वाक्यम रसात्मकम काव्यम” अर्थात आचार्य विश्वनाथ ने रसात्मक वाक्य को ही “काव्य”कहा है। कविता ही रसानुभूति कराती है। चाहे दुख का क्षण हो, चाहे सुख का। प्रत्येक क्षण में स्वत: ही कविता का जन्म हो जाता है, जब भाव, लय, छन्द,ताल आदि के द्वारा सुरमय हो जाता है, तभी कविता बन जाती है और जब हृदय स्थल पर रसवाण द्वारा कविता का प्रहार होता है, तब वह हमें रोमांचित कर देती है। अलौकिक आनन्द से आप्लावित कर देती है।
       छन्द-विधा के समान  भाव-सम्प्रेषणता अन्य विधाओं में यदि दुर्लभ नहीं होती, तो अतिशय रूप में भी नहीं होती। छन्द-शासित काव्य युगों-युगों तक अपने महत्त्वपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठा बनाये रखता है, क्योंकि छन्द-शासित काव्य कालजयी होता है।
        केवल रस, ध्वनि, रीति, अलंकार, गुण आदि के द्वारा निर्मित शब्द-योजना ही कविता बनकर हृदय को आन्दोलित नहीं करती, अपितु कविता में विद्यमान सरलता एवं सहजता का भाव भी हृदय को आन्दोलित कर देता है।
        आज समाज शिथिलता के लक्ष्य को प्राप्त कर रहा है। ऐसे समय में कुछ साहित्य-सर्जक अपनी रस-माधुरी से जन-जन को आप्लावित कर रहे हैं, इसी श्रृंखला में डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” का नाम बड़े ही सम्मान एवं सहृदयता से लिया जाता है। डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” ने पुरानी परिपाटी को नूतन परिवेश प्रदान किया है।
        माँ भारती की वरद पुत्री डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” की ये “भक्तयांजलि” भक्ति में डूबी अनुपम कृति है। मैंने इनका मुक्तक काव्य-संग्रह “भक्तयांजलि” का गहन अवलोकन किया। इसमें कुल 60 रचनाएँ हैं, जो भक्ति-भावना से ओत-प्रोत हैं, जिसमें घनाक्षरी, सवैया, गीत एवं लोकगीत आदि विधाओं पर रचनाएँ की गयीं हैं।
      इसमें कवयित्री की, देवी-देवताओं के विविध रूपों के प्रति श्रद्धा, भक्ति एवं विश्वास के पूर्णरूपेण दर्शन होते हैं। इनकी प्रत्येक रचना को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानों हम भक्ति के अथाह सागर में गोते लगा रहे हैं। डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” की रचनाओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि इन्होंने अत्यन्त मनन-चिन्तन किया है और यह उचित भी है, क्योंकि एक महान मनीषी के लिए मननशीलता अतिशय अनिवार्य गुण होता है।
          नख-शिख-सौन्दर्य-वर्णन में सूक्ष्मतिसूक्ष्म वर्णन भी कवयित्री की दृष्टि से बच नहीं पाया है। भावों की सम्प्रेषणता को मानवीकरण के रूप में प्रस्तुत करना डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” की विशिष्ट विशेषता रही है। कवयित्री के काव्य में भक्तिरस की सहज धारा अवतरित होकर प्रवाहित हो रही है। इन्होंने खड़ी बोली में ब्रजभाषा के कवियों के समान छन्दों का प्रयोग करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जो अत्यन्त श्लाघनीय है। कवयित्री ने अपने काव्य को सहजता एवं सुष्ठता से परिपोषित किया है। इनकी रचनाओं में भाषा एवं अलंकारों का सहज आकर्षण है, सभी रचनाएं स्वाभाविक,  लयात्मक, यथा स्थान पर प्रसाद, माधुर्य एवं ओज इन तीनों गुणों से परिपूर्ण हैं।
        कवयित्री ने अपने काव्य-संग्रह में सर्वप्रथम गौरीसुत गणपति जी का वन्दन करके भारतीय साहित्य-परम्परा का श्रेष्ठतापूर्ण निर्वाह किया है।
   “नाटे, मोटे, छोटे हैं ये गजराज आनन के,
सुन्दर, चपल, लम्बोदर को नमन है”
देवों के देव महादेव शिव जी को कवयित्री कैसे विस्मृत कर सकती है ? वह भगवान शिव को नमन करती है, जो आशुतोष अवढरदानी हैं। जिनकी आराधना से सहज ही इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है, जिनके तन पर भस्म शोभायमान है, जिनकी जटा-पाश में सुरसरि भगवती गंगा क्रीड़ा करती रहती हैं, जिनके वक्षस्थल को सर्पों एवं मुण्डमालाओं के आभूषण सुशोभित करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं, भाँग एवं धतूरा जिन्हें अत्यन्त प्रिय हैं, ऐसे पंचमुखी भगवान शिव को नमन है–
“आदिदेव महादेव भंग को चढ़ाने वाले,
  पञ्चमुख महादेव शिव को नमन है”
      कवयित्री डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” ने राम, कृष्ण, हनुमान, सूर्य, समस्त देवी-देवताओं की, सभी माता स्वरूपा नदियों की स्तुति,वन्दना करके स्वयं को धन्य किया है।
       कवयित्री का शब्द-जगत एवं भाव-जगत अत्यन्त व्यापक है। डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” कारयित्री प्रतिभा की अत्यन्त धनी है। इनकी रचनाओं की भाषा प्रांजल, शब्द-योजना ध्वन्यात्मक, बिम्बविधान सुरुचिपूर्ण है। भक्तिरस का प्राधान्य होने के साथ-साथ श्रृंगार एवं शान्त रस का प्रयोग औचित्यपूर्ण ढंग से किया गया है।
       शब्दालंकार एवं अर्थालंकार का प्रयोग अतिशय शोभनीय है। मुख्य रूप से उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, अनुप्रास, पुनरुक्त एवं मानवीकरण अलंकारों के द्वारा कवयित्री की रचनाएँ श्रेष्ठता के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर ब्रह्मानन्द की अनुभूति कराती हैं। इनका यह काव्य-संग्रह पठनीय एवं जीवनोपयोगी है।
         अध्यात्म हमारे जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है, जो पल-पल हमारे जीवन को सुवासित करता है। नव जीवनी शक्ति का संचार करता है और जीवन जीने की ललक पैदा करता है।
      अस्तु, कवयित्री डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” का यह मुक्तक काव्य-संग्रह “भक्तयांजलि” अपनी सुगन्ध से दसों दिशाओं को सुगन्धित करता हुआ, जन-जन को आह्लादित करता हुआ, परमानन्द की अनुभूति कराता हुआ, भक्ति के अथाह सागर में सभी को डुबकी लगवा रहा है और लोगों के कण्ठों का हार बन कर साहित्य-जगत में सहर्ष स्वागत, सम्मान एवं प्रतिष्ठा के शिखर का चुम्बन करता हुआ नज़र आ रहा है।
        कवयित्री डॉ0 मृदुला शुक्ला “मृदु” अपनी यशस्वी लेखनी के साथ प्रगति के मार्ग पर सतत अग्रसर रहकर चतुर्दिक यश, वैभव प्राप्त करती रहें।इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ–
समीक्षक, लेखिका एवं साहित्यकार
    कु0 विमला शुक्ला
लखीमपुर-खीरी (उ0प्र0)
कॉपीराइट–लेखिका कु0 विमला शुक्ला

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

निजी स्वार्थ के कारण विपक्ष हुआ धड़ाम।

Thu May 23 , 2019
वाह! अजब रूप और गजब कहानी। वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। देश की चिंता किसे है आज के समय में यह समझ पाना अत्यंत जटिल हो गया है। इसलिए कि आज देश की सियासी पार्टियां अपना जो रूप दिखा रही हैं वह अत्यंत जटिल एवं मस्तिष्क को चकरा देने […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।