वो विरह वेदना सहती है, फिर भी न वो कुछ कहती है
चाहें दिल में हो दर्द भरा, पर सदा प्रेम में बहती है
वो सहनशील भी कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
जब भी बीमार मैं हो जाता, दादी के नुस्खे बतलाये
दो और दो चार नही जोड़े, परिवार जोड़ना सिखलाये
वो पढ़ी लिखी ही कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
वो समझदार है कम ही सही,पर जोर चले न ठगिनी के
वो चूल्हा चौका सब करती, पांवो में निशां हैं अग्नी के
वो आग मे तपती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
सब मुसीबतों से बचने को, पाई से पाई जोड़़ दिया
जब जब मुसीबतें आयी है,सब शौक ही अपना छोड़ दिया
वो शौक छोड़ती अपनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
मैं शाम को जब भी घर जाता, वो दौड़ी दौड़ी आती है
कुछ खाये पीये नही आप, वो तुरत नाश्ता लाती है
वो प्यार लुटाती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
सुख दुख में कैसे चलते है, मुझको बतलाती रहती है
वो पढ़ी लिखी तो नही बहुत, मुझको समझाती रहती है
फिर भी अनुभवी वो कितनी है, आखिर वो मेरी पत्नी है।
मुझे विदा करने को सुबह, दीवारों से वो लिपट जाती
जैसे ही शाम को मैं आता ,वो आकर मुझमें सिमट जाती
बेचैन वो रहती कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
हाथों मे उठा सामानों को ,वो उनकी तौल बताती है
उसने न गणित में वृत्त पढ़ा,पर रोटी गोल बनाती है
वो कलाकार भी कितनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।
ईश्वर से दुआ मैं करता हूं ,वो हरदम मेरे साथ रहे
और अच्छेे सच्चे मित्रों सा,हाथों में उसके हाथ रहे
बस मेरी दुआएं इतनी है,आखिर वो मेरी पत्नी है।।
#अजय एहसास
परिचय : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सुलेमपुर परसावां (जिला आम्बेडकर नगर) में अजय एहसास रहते हैं। आपका कार्यस्थल आम्बेडकर नगर ही है। निजी विद्यालय में शिक्षण कार्य के साथ हिन्दी भाषा के विकास एवं हिन्दी साहित्य के प्रति आप समर्पित हैं।